
मध्य प्रदेश में 85 वर्षीय गेंदा बाई का जीवन आज एक वृद्धाश्रम की दीवारों के सहारे कट रहा है। सात संतानों की मां गेंदा बाई ने अपनी पूरी जिंदगी बेटों-बेटियों की परवरिश, उनकी पढ़ाई-लिखाई और घर-परिवार बसाने में लगा दी। लेकिन जब उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें सहारे की ज़रूरत थी, तब वही संतानें उन्हें बोझ मानने लगीं।
मामला प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुंचा, जिसके बाद लिखित समझौता हुआ कि बेटा और बेटी बारी-बारी से हर महीने मां की सेवा करेंगे। लेकिन इस समझौते की उम्र महज बीस दिन ही रही। गेंदा बाई की खुद की बेटी ने उन्हें वृद्धाश्रम के दरवाजे पर छोड़कर किनारा कर लिया।
वृद्धाश्रम की संचालक ने बताया, “यह कहानी सिर्फ गेंदा बाई की नहीं, बल्कि हजारों गेंदा बाइयों की कहानी है, जिन्हें जीवनभर परिवार के लिए जीने के बाद भी बुढ़ापे में तन्हाई और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है।”
यह घटना समाज के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा करती है—क्या आधुनिक दौर में बुजुर्गों के लिए अपने ही घर में सम्मान और सहारा मिल पाना इतना मुश्किल हो गया है?