अधीनस्थ न्यायिक सेवा के सदस्य सीधी भर्ती से जिला जज के तौर पर नियुक्ति के पात्र नहीं : न्यायालय

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उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को व्यवस्था दी कि मजिस्ट्रेट और सिविल न्यायाधीश जैसे निचली अदालत के सदस्य सीधी भर्ती के जरिए जिला न्यायाधीशों के तौर पर नियुक्ति के लिए पात्र नहीं हैं। यह तरीका विशेष रूप से उन वकीलों के लिए है तो सात साल तक लगातार प्रैक्टिस कर चुके हैं। न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिका के लंबित रहने के दौरान सीधी भर्ती के जरिए जिला न्यायाधीश पद पर नियुक्त न्यायिक अधिकारियों को उनके मूल पदों पर वापस लौटना होगा। न्यायालय ने हालांकि, कहा कि मजिस्ट्रेट और सिविल न्यायाधीश को योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नत किया जा सकता है या जिला न्यायाधीश पद के लिए सीमित प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से नियुक्त किया जा सकता है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट की पीठ ने सर्वसम्मति से संविधान के अनुच्छेद 233 की व्याख्या की जो जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है।

पीठ ने कहा कि हमारी राय है कि अधिवक्ताओं के लिए निर्धारित कोटा के तहत जिला न्यायाधीश की सीधी भर्ती के लिए अभ्यर्थी को कट-ऑफ की तारीख को प्रैक्टिस में रहना चाहिए तथा नियुक्ति के समय उन्हें न्यायिक सेवा या केंद्र या राज्य की अन्य सेवाओं में नहीं होना चाहिए। अनुच्छेद 233 के उप खंड दो में कहा गया है कि कोई व्यक्ति जो पहले से ही केंद्र या राज्य की सेवा में है, वह जिला न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा सर्वोच्च अदालत ने 2016 के पटना उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया जिसमें सेवारत न्यायिक अधिकारियों को जिला न्यायाधीश पद के लिए वकीलों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति दी गई थी।