
उत्तर प्रदेश में शुरू की गई मातृभूमि योजना न केवल गांवों के विकास की दिशा में मील का पत्थर बन रही है, बल्कि इससे प्रवासी लोगों और उनके मूल गांवों के बीच एक नया और भावनात्मक रिश्ता भी स्थापित हो रहा है। इस योजना ने गांव की मिट्टी से रिश्तों को फिर से जोड़ने का माध्यम बनकर सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति की नींव रख दी है जहां जड़ें भी मजबूत होंगी और पहचान भी स्थायी बनेगी।
जनता और सरकार का साझेदाराना मॉडल
मातृभूमि योजना के तहत यदि कोई व्यक्ति अपने गांव में सार्वजनिक हित में निर्माण करवाना चाहता है, तो उसे परियोजना लागत का 60% खर्च स्वयं वहन करना होगा, जबकि शेष 40% सरकार वहन करेगी। योजना का पंजीकरण पूर्णतः ऑनलाइन है। निर्माण कार्य पर दानदाता का नाम शिलापट्ट पर अंकित किया जाएगा, जिससे योगदान को स्थायी रूप से सम्मान मिले।
जमीन पर उतरता विकास: कहां क्या हो रहा है?
कुछ जिले जहां यह योजना पूरी ताकत से लागू हो चुकी है –
बुलन्दशहर: स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स 80% तैयार
उन्नाव: कला अकादमी 40% निर्माण पूरा
बिजनौर: कन्या इंटर कॉलेज की नींव रखी जा चुकी
बागपत: सीसी रोड का निर्माण कार्य तेज़ी पर
लखनऊ: योजना के तहत कई प्रस्तावों को मंज़ूरी
आंकड़े जो भरोसा बढ़ाते हैं
16 योजनाएं पूर्ण हो चुकी हैं
18 योजनाएं निर्माणाधीन हैं
26 योजनाएं प्रस्तावित अवस्था में हैं
यह साफ दर्शाता है कि यह योजना सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर सक्रिय रूप से क्रियान्वित हो रही है।
किस तरह के निर्माण हो रहे हैं प्राथमिकता में?
सामुदायिक भवन
आंगनबाड़ी केंद्र
लाइब्रेरी, खेल मैदान, ओपन जिम
आरओ प्लांट, हाईमास्ट लाइट, सोलर लाइट
सीसीटीवी, सीवर लाइन
पशु प्रजनन केंद्र, दूध डेयरी
कौशल विकास केंद्र, अग्निशमन केंद्र
बस स्टैंड, यात्री शेड, शौचालय, श्मशान घाट
गांव से रिश्ता जोड़ते प्रवासी, सम्मान और गौरव का क्षण
इस योजना का सबसे गहरा सामाजिक प्रभाव यह है कि प्रदेश और देश से बाहर रह रहे प्रवासी नागरिक, अब गर्व के साथ अपने गांव के विकास में भागीदारी कर रहे हैं। कई परिवार गांव में सामुदायिक लाइब्रेरी या स्पोर्ट्स ग्राउंड बनवा रहे हैं। विदेशों में रहने वाले भी ऑनलाइन पंजीकरण कराकर अपने गांव में निर्माण कार्य करा रहे हैं। गांव के लोग इन प्रवासियों को “विकासकर्ता” के रूप में सम्मान दे रहे हैं। मातृभूमि योजना न केवल एक प्रशासनिक प्रयास है, बल्कि यह सामाजिक चेतना और नागरिक सहभागिता का जीता-जागता उदाहरण बन चुकी है। जहां सरकार और समाज मिलकर गांवों को आत्मनिर्भर और आधुनिक बना रहे हैं, वहीं यह योजना एक मूल्य आधारित जुड़ाव की नई परिभाषा गढ़ रही है।