कुल्थी की दाल गरीबों की दाल नहीं, हर वर्ग के लिए सेहत का खजाना

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दक्षिण भारत के कई हिस्सों में जिसे ‘गरीबों की दाल’ कहा जाता है, वही कुल्थी की दाल (Horse Gram) अब स्वास्थ्य विशेषज्ञों और आयुर्वेदाचार्यों की नजर में एक पोषण powerhouse के रूप में उभर रही है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और हिमालयी क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से उपयोग में लाई जाने वाली यह दाल न केवल किफायती है बल्कि अपने भीतर कई दुर्लभ औषधीय गुण भी समेटे हुए है।

पोषण का भंडार

कुल्थी की दाल को प्रोटीन, फाइबर, आयरन, कैल्शियम और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर माना जाता है। इसमें मौजूद प्रोटीन मांसपेशियों के विकास में सहायक है, जबकि आयरन एनीमिया से लड़ने में मदद करता है। कैल्शियम और फॉस्फोरस हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और फाइबर पाचन को सुधारते हुए कोलेस्ट्रॉल लेवल को नियंत्रित करता है। साथ ही इसमें पाया जाने वाला पोटेशियम और मैग्नीशियम ब्लड प्रेशर को संतुलित बनाए रखने में सहायक होता है।

आयुर्वेद में कुल्थी का महत्व

आयुर्वेद में कुल्थी को कई रोगों की औषधि के रूप में देखा गया है। विशेष रूप से पथरी, मोटापा, बवासीर, हाई कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज जैसी बीमारियों में इसका सेवन अत्यंत लाभकारी माना गया है।

किडनी स्टोन: कुल्थी में पाए जाने वाले फेनोलिक यौगिक और फ्लैवोनॉएड्स मूत्र मार्ग को साफ कर पथरी को तोड़ने में मदद करते हैं।

दिल की सेहत: सुबह खाली पेट कुल्थी का पानी पीने से हृदय रोगों का खतरा कम हो सकता है।

डायबिटीज: इसके धीमे पचने वाले कार्बोहाइड्रेट ब्लड शुगर को नियंत्रित रखते हैं।

वजन घटाना: फाइबर से भरपूर यह दाल भूख को नियंत्रित करती है और मेटाबोलिज्म को दुरुस्त रखती है।

हड्डियों और खून के लिए: इसमें भरपूर कैल्शियम और आयरन हड्डियों को मजबूत करने और खून की कमी को दूर करने में सहायक हैं।

कुल्थी की दाल को लंबे समय तक सिर्फ एक गरीब की थाली तक सीमित कर देखा गया, लेकिन अब यह समझने की आवश्यकता है कि इसमें छिपी शक्ति किसी भी महंगी सुपरफूड से कम नहीं है। सेहतमंद जीवनशैली की ओर कदम बढ़ाने वालों के लिए कुल्थी एक बेहद सस्ता और असरदार विकल्प हो सकता है।