केरल हाईकोर्ट ने ट्रेड यूनियन की बढ़ती मनमानी पर राज्य सरकार और प्रशासन को लताड़ा, कहा नहीं सुनना चाहती ‘नोक्कुकूली’ शब्द

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‘नोक्कुकूली’ पर कानून बन जाने और 1 मई 2018 को सरकार द्वारा इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी ट्रेड यूनियन की बढ़ती मनमानी पर केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और पुलिस को खरी खोटी सुनाई है। अदालत ने कहा कि वह अब राज्य में ‘नोक्कुकूली’ शब्द नहीं सुनना चाहती है और पुलिस को किसी भी पार्टी संबद्धता के बावजूद उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है जो इस तरह से मजदूरी की मांग करता है, क्योंकि यह “अवैध और गैरकानूनी” है।

‘नोक्कुकूली’ या मजदूरी की लगातार घटनाओं से निराश केरल उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि इस तरह की घटनाएं राज्य को “उग्रवादी ट्रेड यूनियनवाद” की प्रतिष्ठा दे रही हैं जो निवेशकों को यहां आने से रोक रही है और इसलिए, इस तरह की प्रथाओं को समाप्त किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन का यह निर्देश एक होटल मालिक की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें कुछ व्यक्तियों के हस्तक्षेप के बिना अपना व्यवसाय चलाने के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की गई थी, जो कथित रूप से मजदूरी की मांग कर रहे थे। अदालत ने यह भी कहा कि किसी को रोजगार से वंचित किए जाने पर उसका समाधान हिंसा नहीं है और किसी भी कर्मचारी को जिसे नौकरी से वंचित किया जाता है, उसे राहत के लिए श्रम बोर्ड से संपर्क करना चाहिए।

सितंबर महीने में तिरुवनंतपुरम के थुम्बा में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र सुविधा में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के एक ट्रक को अनुमति देने के लिए लोगों के एक वर्ग द्वारा ‘नोक्कू-कूली’ की मांग की गई थी। इस घटना पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाएं राज्य के लिए शर्मिंदगी और अपमान का कारण साबित होती हैं।

केरल में ‘नोक्कुकूली’ शब्द अनैतिक रुप से मजदूरी वसूलने के एक तरीके के रुप में एक बड़े स्तर पर मौजूद है। यह केरल में कम्युनिस्ट विचारधारा को मानने वाले ट्रेड यूनियन के द्वारा किसी व्यवसायी को बिना रुकावट काम करने देने के लिए गैर कानूनी ढंग से वसूल किए जाने वाला टैक्स है। कम्युनिस्टों और ट्रेड यूनियन की इसी तरह की मनमानी के कारण एक आम इंसान का केरल में व्यापार कर पाना काफी मुश्किल साबित होता है।