शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती मां दुर्गा की उपासना आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल मास की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। नवरात्र आरंभ अमावस्या युक्त प्रतिपदा में वर्जित और द्वितीया युक्त प्रतिपदा में शुभ है। इस लिहाज से शारदीय नवरात्र दस अक्टूबर (आश्विन शुक्ल प्रतिपदा) से शुरू हो रहा है। व्रत-पूजन विधान 17 अक्टूबर यानी महानवमी तक चलेंगे और 18 अक्टूबर की दोपहर में पूर्णाहुति व पारन किया जाएगा। ऐसे में इस बार भी शारदीय नवरात्र संपूर्ण नौ दिनों का होगा।
वैसे तो मां दुर्गा यानि देवी की पूजा का पर्व साल में चार बार आता है लेकिन साल में दो बार ही मुख्य रूप से नवरात्रि पूजा की जाती है। प्रथम नवरात्रि चैत्र मास में शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होते हैं और रामनवमी तक चलती है। वहीं शारदीय नवरात्र आश्विन माह की शुक्ल प्रतिपदा से लेकर विजयदशमी के दिन तक चलती है। इन्हें महानवरात्रि भी बोला जाता है। दोनों ही नवरात्रों में देवी का पूजन नवदुर्गा के रूप में किया जाता है। दोनों ही नवरात्रों में पूजा विधि लगभग समान रहती है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के नवरात्रों के बाद दशहरा यानि विजयदशमी का पर्व आता है। शरद ऋतु के आश्विन माह में आने के कारण इन्हें शारदीय नवरात्रों का नाम दिया गया है। नवरात्रि में मां भगवती के सभी 9 रूपों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है
इस बार शारदीय नवरात्र खास होंगे। कारण है कि 10 अक्टूबर से शुरू होने वाले नवरात्र पर 110 साल बाद अद्भुत संयोग बनने जा रहा है। ऐसे में एक ही दिन दो नवरात्र होने के बावजूद यह पूरे नौ दिन चलेंगे। दूसरे नवरात्र का आगाज चित्रा नक्षत्र में होगा व श्रवण नक्षत्र में महानवमी का आगमन होगा।
वाराणसी के ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार, 17 अक्टूबर को दोपहर 12.27 बजे तक ही अष्टमी है और उसके बाद नवमी लग जाएगी। इस तिथि संधि के कारण महाअष्टमी और महानवमी व्रत का दर्शन-पूजन 17 अक्टूबर को ही किया जाएगा। इसी दिन 12.27 बजे के बाद नवरात्र का होम इत्यादि भी किया जाएगा। नवरात्र व्रत का पारन 18 अक्टूबर को दोपहर 2.32 बजे के बाद कर लिया जाएगा और उसी दिन प्रतिमा विसर्जन भी किया जाएगा।
नौका पर आगमन, कंधे पर विदाई
माता का आगमन इस बार नौका पर हो रहा है। इसका फल सर्व कल्याणकारी होता है। वहीं गमन मानव कंधे पर हो रहा है, जिसका फल अत्यंत लाभकारी एवं सुख दायक होता है। इस लिहाज से माता का आगमन व गमन दोनों सुखद है।
महाष्टमी का पारन सुबह, नवरात्र का दोपहर बाद
महाष्टमी व्रत का पारन 18 अक्टूबर को प्रात:काल में होगा। नवरात्र व्रत का पारन दशमी में अर्थात 18 अक्टूबर को 2.32 बजे के बाद किया जाएगा।
शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 10 अक्टूबर को कलश स्थापना व ध्वजारोपण के लिए शुभ समय अभिजीत मुहूर्त दिन में 11.37 से 12.23 बजे तक किया जा सकेगा। शास्त्र के अनुसार, ‘चित्रावय धृतियोगे निषेधानुरोधेन अभिजिन्नमुहूर्त:’ अर्थात चित्रा व वैद्धति का योग प्रात:काल में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को बन रहा हो तो अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापन करना चाहिए। महानिशा पूजा 16 अक्टूबर को निशीथ काल में किए जाएंगे।
नवरात्रि के पहले दिन 9 दिनों के व्रत और उपवास का संकल्प लें। इसके लिए सीधे हाथ में जल लेकर उसमें चावल, फूल, एक सुपारी और सिक्का रखें। हो सके तो किसी ब्राह्मण को इसके लिए बुलाएं। ऐसा न हो सके तो अपनी कामना पूर्ति के लिए मन में ही संकल्प लें और माता जी के चरणों में वो जल छोड़ दें।
इन दिनों व्रत-उपवास में सुबह जल्दी उठकर नहाएं और घर की सफाई करें। पूरे घर में गौमूत्र और गंगाजल का छिड़काव करें। उसके बाद माता जी की पूजा करें। पूजा में ताजा पानी और दूध से माता जी को स्नान करवाएं। फिर कुमकुम, चंदन, अक्षत, फूल और अन्य सुगंधित चीजों से पूजा करें और मिठाई का भोग लगाकर आरती करें। नवरात्रि के पहले ही दिन घी या तेल का दीपक लगाएं। ध्यान रखें वो दीपक नौ दिनों तक बुझ न पाएं।
व्रत-उपवास में माता जी की पूजा करने के बाद ही फलाहार करें। यानि सुबह माता जी की पूजा के बाद दूध और कोई फल ले सकते हैं। नमक नहीं खाना चाहिए। उसके बाद दिनभर मन ही मन माता जी का ध्यान करते रहें। शाम को फिर से माता जी की पूजा और आरती करें। इसके बाद एक बार और फलाहार (फल खाना) कर सकते हैं। अगर न कर सके तो शाम की पूजा के बाद एक बार भोजन कर सकते हैं।
नवरात्रि के दौरान तामसिक भोजन न करें। यानि इन 9 दिनों में लहसुन, प्याज, मांसाहार, ठंडा और झूठा भोजन नहीं करना चाहिए। इन दिनों में क्षौरकर्म न करें। यानि बाल और नाखून न कटवाएं और शेव भी न बनावाएं। इनके साथ ही तेल मालिश भी न करें। नवरात्रि के दौरान दिन में नहीं सोएं। नवरात्रि में सूर्योदय से पहले उठें और नहा लें। शांत रहने की कोशिश करें। झूठ न बोलें और गुस्सा करने से भी बचें। इसके साथ ही मन में किसी के लिए गलत भावनाएं न आने दें।