
भारत सरकार अब विदेशों में संसदीय कूटनीति को और अधिक मजबूत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रही है। इसके तहत भारत जल्द ही विभिन्न देशों की संसदों के साथ अंतर-संसदीय मैत्री समूह (Inter-Parliamentary Friendship Groups) की स्थापना करेगा। इस पहल का उद्देश्य वैश्विक मंचों पर भारत की लोकतांत्रिक समझ और दृष्टिकोण को साझा करना है।
इस दिशा में विचार उस समय मजबूत हुआ जब ऑपरेशन सिंदूर के बाद शशि थरूर, कनिमोझी और सुप्रिया सुले जैसे विपक्षी नेताओं की अगुवाई में सात बहुदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडलों ने विभिन्न देशों का दौरा किया। इन प्रतिनिधिमंडलों ने अपनी विदेश यात्राओं के दौरान वहां की संसदों से मिले सकारात्मक संकेत और सहयोग की इच्छा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष साझा किया था।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सोमवार को संसद और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की प्राक्कलन समितियों के राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान इस विषय पर जानकारी दी। उन्होंने कहा, “हम संसदीय मैत्री समूह स्थापित करने पर काम कर रहे हैं क्योंकि कई देशों ने इस दिशा में सहयोग की इच्छा जताई है।” उन्होंने यह भी बताया कि इस संबंध में वे जल्द ही विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से चर्चा करेंगे ताकि प्रक्रिया के तौर-तरीकों को अंतिम रूप दिया जा सके।
इस मुद्दे को लेकर सभी दलों की भागीदारी सुनिश्चित करने की योजना है ताकि मैत्री समूह राजनीतिक सहमति और व्यापक दृष्टिकोण के साथ काम कर सकें। इससे भारत की विदेश नीति को संसदीय स्तर पर भी मजबूती मिलेगी।
जब संवाददाताओं ने जस्टिस यशवंत वर्मा से संबंधित महाभियोग की संभावित प्रक्रिया पर सवाल किया तो ओम बिरला ने स्पष्ट किया कि “जब यह मुद्दा संसद के समक्ष लाया जाएगा, तब ही इस पर चर्चा की जाएगी। फिलहाल ऐसा कोई विषय सदन में लंबित नहीं है, इसलिए उस पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा।”
भारत की यह पहल संसदीय कूटनीति को नया आयाम देगी। वैश्विक सहयोग, द्विपक्षीय रिश्तों और लोकतांत्रिक संवाद को आगे बढ़ाने में अंतर-संसदीय मैत्री समूह एक सेतु का कार्य करेंगे।