
भैरव तत्त्व सहायक तत्त्व होता है। जीवन में भैरव तत्त्व बहुत उपयोगी होता है। बिना भैरव तत्त्व के कोई अकेला कुछ कार्य नहीं कर पाता है। भैरव तत्त्व का मतलब है आपके जीवन में कोई मित्र, कोई सहायक, कोई नौकर, कोई शिष्य, कोई सिर्फ आपको मानने वाला, कोई सिर्फ आपकी सुननेवाला, कोई सिर्फ आपका हितचिंतक, उसे ही आप अपना भैरव कह सकते है। जिस गुरु के ऊपर भैरव जी की कृपा होती है, उन्हें समर्पित शिष्य मिलते है। जिस सेनापती या राजा के ऊपर भैरव की कृपा हो उन्हें अपने प्राणों की आहुती देने वाले सैनिक मिलते हैं, जिस नेता के ऊपर भैरव कृपा हो उन्हें समर्पित अनुयायी या कार्यकर्ता मिलते हैं। जिस अधिकारी के ऊपर भैरव कृपा होती है, उनके कर्मचारी सदैव उनकी बात मानेंगे। जिस व्यक्ति के ऊपर भैरव कृपा हो उसके मित्र उसके लिये कुछ भी करने के लिये तैयार होते है। इसी प्रकार भैरव तत्त्व के प्रभाव से युक्त शिष्य अपने गुरु के लिये जान न्यौछावर करता है। भैरव एक ऐसा तत्त्व है जो सिर्फ आपके लिये कुछ भी करने को तैयार हो। जब सती ने दक्ष के यज्ञ में अपने आपको भस्म किया तब शिव जी क्रोधित हुये और उनके क्रोध से जिस वीरभद्र का आविर्भाव हुआ वो भैरव ही थे। वीरभद्र ने सिर्फ शिव जी के लिये विष्णु आदि देवताओं से युद्ध किया था। कालभैरव ने शिव जी के लिये ही ब्रह्मा का पाँचवा मुख काट लिया था। भैरव तत्त्व सैनिकों में भी होता है इसलिये वे देश के लिये बिना व्यक्तिगत हित देखे बलिदान देते है, भैरव तत्व के कारण ही क्रान्तिकारी अपने देश के लिये हँसते-हँसते फाँसी चढ़ जाते है। भैरव तत्त्व स्वार्थी नहीं होता। भैरव अपने स्वामी के लिये, अपने विचारों के लिये, अपने देश के लिये, राज्य के लिये कुछ भी कर सकता है और किसी भी हद तक जा सकता है। भैरव तत्व आपका संक्षरक है।
जब तक भैरव की आपके ऊपर कृपा है तब तक कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता। भैरव तत्त्व आपके शत्रु को ध्वस्त कर देता है। सभी देवियों के पास शिवजी भैरव के रूप में विद्यमान है। यहाँ शिव तत्त्व शक्ती तत्त्व का सहायक बन जाता है। भैरव कृपा के कारण ही छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप को उनके लिये जान देने वाले असंख्य वीर मिल जाते हैं, भैरव कृपा के कारण ही लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, गांधी जी की एक पुकार पर लोग देश के लिये बलिदान देने को तैयार थे। अगर आपके जीवन में कोई व्यक्ति ऐसा हो जो आपके लिये कुछ भी करने को तैयार हो तो आप भी समझ लीजिये कि आपके ऊपर भैरव जी की कृपा है। कुत्ते के अन्दर भैरव तत्व माना जाता है, इसलिये कुत्ते मालिक के प्रति वफादार होते है। इसलिये काले कुत्ते को अगर रोटी खिला दें तो बहुत सारी बाधायें टल जाती है। कुत्ते, मालिक के लिये अपनी जान भी देते है। भैरव तत्व भी ऐसा ही होता है। आपके प्रति वफादार, आपके हर आदेश का पालन करने वाला, आपके शत्रु और विरोधी के ऊपर टूट पड़ने वाला, आपका संरक्षक, आपका अत्यन्त करीबी, जो आपकी छाया हो, जो आपके लिये अपना लिये अपना सर कलम करने को तैयार, आपके लिये जान देने के लिये तैयार और आपके शत्रु की जान भी ले सके। अगर आप ऐसे व्यक्ति किसी भी रूप में अपने जीवन में चाहते हैं, अगर आप शत्रु बाधा से मुक्त होना चाहते है, अगर आप किसी व्यक्ति के द्वारा सदैव पीड़ित रहते हैं, लेकिन उसके खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकते, अगर आप ऐसी समस्या में घिर गये है, जहाँ आपको रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है या आपको कोई मदद करने के लिये तैयार नहीं है, अगर आप अपने आप को बहुत दुर्बल, असहाय समझते है, अगर आप चाहते हैं कि कोई अदृश्य शक्ति सदैव आपका संरक्षण करे तो फिर आप भैरव साधना करे और निश्चिंत हो जायें। भैरव की कृपा से सारे बिगड़े काम स्वतः बनते जायेंगे। भैरव साधना से कहीं से भी अंजान रूप से आपको मदद मिलेगी। कोई आपकी बात नहीं मान रहा है तो वो आपकी बात मानने लगेगा। आपके शत्रु परास्त होंगे, भैरव साधना से राहु और शनि की बाधा भी दूर होती है।
अगर कोई तन्त्र प्रयोग हुआ है तो भैरव साधना से उससे मुक्ति मिलेगी। अगर कोई आपका पैसा नहीं लौटा रहा है तो वह पैसा दे देगा। कोई आपको त्रस्त कर रहा है तो वो आपके सामने घुटने टेक देगा। अगर किसी की शराब छुड़ानी हो तो भी आप यह भैरव साधना कर सकते है, अगर आपके यहाँ नौकर टिकते नहीं है तो यह भैरव साधना कर सकते है, अगर परिवार में कोई सदस्य आपको बिना वजह परेशान कर रहा है तो भी आप इस साधना से उससे छुटकारा पा सकते है, अगर ऑफिस में कोई आपको तकलीफ दे रहा है तो यह भैरव साधना अवश्य करके देखे। अगर आप एक अच्छे शिष्य बनना चाहते है तो आपको यह भैरव साधना जीवन में करनी ही चाहिए। बिना भैरव तत्व के शिष्य तत्व का महत्त्व नहीं है। राहु की महादशा चल रही है तो भी भैरव साधना करें। जीवन में कोई बाधा हो तो इसे श्रद्धा से करें आपको फल जरूर मिलेगा।
भैरव साधना बहुत प्राचीन काल से प्रचलित है। इसे तन्त्र क्षेत्र में बहुत मान्यता है। इस साधना को सात्विक, राजसिक और तामसिक इन तीनो पद्धति से किया जा सकता है। यदि आप गृहस्थ है तो सात्विक पद्धति से करना चाहिये। काल भैरव जयंती कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को होती है। इस रात्रि काल में यह साधना सम्पन्न करें। यह रात्रि सिद्धिप्रद होती है। इसलिये इसे अपनी क्षमतानुसार अवश्य करें। आपको अगर आत्मविश्वास बढ़ाना है, अपनी मानसिक क्षमता का विकास करना है, अपनी महत्त्वाकांक्षा को पूर्ण करना है तो यह साधना बहुत लाभदायी है।
प्राचीन शास्त्रों में भैरव कुल ५२ की संख्या में माने गये है। हालांकि अष्ट भैरव प्रमुख माने जाते है, ग्रामीण इलाको में इसे भैरू भी कहते हैं। महाराष्ट्र में जो खंडोबा है वे मार्तण्ड भैरव का ही एक रूप है। राजस्थान सहित उत्तर भारत में भैरव जी के कई सारे रूप मिलेंगे। प्राचीन काल में हर गांव की सीमा पर भैरव का मन्दिर होता था। वे गांव के संरक्षक होते थे। नाथ परम्परा में भी भैरव साधना की जाती है। शाबर मन्त्रों में भैरव के कई सारे मन्त्र मिलेंगे। भैरवास्त्र एक बहुत ही सटीक और परिणाम कारक स्तोत्र है। इसके परिणाम तुरन्त दिखाई देते है। साधक इसका प्रयोग करके देखे। भैरव का एक और रूप है काल भैरव, जो साक्षात काल स्वरूप है उसी सन्दर्भ में उज्जैन का काल भैरव मन्दिर प्रख्यात है। यहाँ भैरव जी को शराब चढ़ायी जाती है, जिसका वे नित्य पान करते है। हजारों साल से यहाँ चढ़ाई गई शराब कहाँ जाती है किसी को पता नहीं। यह मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है। काल भैरव काशी के कोतवाल माने जाते है। काशी में भी उनका प्रसिद्ध मन्दिर है। यहाँ भक्तों की सर्व मनोकामना पूर्ण होती है। भैरव जी के कई सारे प्रसिद्ध मन्दिर है। महाराष्ट्र में अमरावती के पास भी परतवाड़ा से आगे पहाड़ पर बहिरम गांव में एक प्रसिद्ध भैरव मन्दिर है। महाराष्ट्र के पश्चिम क्षेत्र में कालभैरव के कई सारे मन्दिर मिलेंगे। दक्षिण भारत में भी भैरव जी के मन्दिर हैं। भक्तों के ऊपर तुरन्त प्रसन्न होने वाले, भक्तों की बिगड़ी बनाने वाले भैरव सर्वत्र पूजे जाते है। भैरव का एक और रूप है आकाश भैरव, जो शरभेश्वर है। इनकी साधना तन्त्र क्षेत्र में उच्च कोटि की मानी जाती है। नेपाल में आकाश भैरव का प्रसिद्ध मन्दिर है। भैरव तत्व की महिमा अनन्त है। इनकी साधना एक दिव्य साधना है। साधकों को इसे अवश्य करना चाहिए।













