
मोदी सरकार ने सिंधु जल समझौते को स्थगित करने के निर्णय को आगामी चुनावों से पहले एक बड़े राजनीतिक अभियान में बदलने की तैयारी कर ली है। केंद्र सरकार अब इस मुद्दे को उत्तर भारत के किसानों तक पहुंचाकर कांग्रेस पर निशाना साधने और जल अधिकार को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने की रणनीति पर काम कर रही है।
इन राज्यों में होगा फोकस
इस अभियान का मुख्य केंद्र पांच राज्य जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान होंगे, इन राज्यों में भाजपा के वरिष्ठ नेता शिवराज सिंह चौहान, भूपेंद्र यादव और सीआर पाटिल के नेतृत्व में ‘किसान संवाद’ और जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।
अभियान के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं
सिंधु समझौते के स्थगन का लाभ
किसानों को बताया जाएगा कि अब सिंधु, चेनाब और रावी नदियों का जल भारतीय किसानों के लिए उपलब्ध होगा।
जो पानी पहले पाकिस्तान जाता था, वह अब कृषि और सिंचाई के लिए भारत में उपयोग किया जाएगा।
कांग्रेस पर तीखा हमला
1960 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा किए गए सिंधु जल समझौते को ‘ऐतिहासिक अन्याय’ बताया जाएगा।
प्रचार किया जाएगा कि कांग्रेस ने 80% पानी पाकिस्तान को सौंपकर इन राज्यों के किसानों के साथ वंचना की।
नई सिंचाई परियोजनाओं की जानकारी
सरकार बताएगी कि वह चेनाब नदी को सतलुज-ब्यास प्रणाली से जोड़ने के लिए 160 किलोमीटर लंबी नहर और 13 किलोमीटर लंबी सुरंग बना रही है।
यह परियोजना अंततः इंदिरा गांधी नहर प्रणाली से जुड़कर राजस्थान के सूखे इलाकों तक पानी पहुंचाएगी।
रावी नदी की सहायक ‘उझ’ परियोजना को नई रफ्तार
उझ परियोजना को फिर से शुरू किया गया है।
इसे रावी-व्यास लिंक योजना के तहत शामिल कर पानी को व्यास बेसिन तक पहुंचाने की योजना बनाई जा रही है।
बीजेपी इस अभियान के माध्यम से किसानों को यह संदेश देना चाहती है कि मौजूदा सरकार उनके दीर्घकालिक जल अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही कांग्रेस की पुरानी नीतियों को कटघरे में खड़ा कर यह दिखाना चाहती है कि अब “जल अधिकार” भी एक राष्ट्रवादी और किसान हितैषी मुद्दा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अभियान आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी के लिए उत्तर भारत में किसानों और ग्रामीण वोटरों के बीच समर्थन बढ़ाने का एक अहम राजनीतिक औजार बन सकता है।