सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में प्रवर्तन निदेशालय की गिरफ्तारी संबंधी शक्तियों में कटौती करने के फैसले पर मोहर लगाई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा 44 के तहत कोई विशेष कोर्ट यदि मामले का संज्ञान ले लेता है, तो इसके बाद ED आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकता। जस्टिस अभय एस. ओका व जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, यदि ED किसी अपराध में समन जारी होने के बाद कोर्ट में पेश हो चुके आरोपी को हिरासत में लेना चाहता है, तो उसे कोर्ट में आवेदन करना होगा। पीठ ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, यदि आरोपी किसी समन के जवाब में कोर्ट में पेश होता है तो जांच एजेंसी को हिरासत के लिए संबंधित कोर्ट में आवेदन करना होगा। यदि आरोपी कोर्ट के समन के जवाब में पेश हो रहा है तो उसे स्वत: ही हिरासत में नहीं माना जा सकता। ऐसे आरोपी को जमानत का आवेदन देने की जरूरत नहीं है। इसलिए पीएमएलए कानून की धारा 45 की दोहरी शर्त ऐसे केस में लागू नहीं होगी। हालांकि, विशेष कोर्ट अभियुक्त को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 88 के अनुसार बॉन्ड देनेे का निर्देश दे सकता है। धारा 45 की दोहरी शर्त कहती है, यदि मनी लॉन्ड्रिंग केस का आरोपी जमानत का आवेदन करता है, तो कोर्ट को पहले सरकारी वकील को पक्ष रखने की अनुमति देनी होगी व इस बारे में संतुष्ट होने पर ही कि आरोपी दोषी नहीं है और आगे भी ऐसा अपराध नहीं करेगा, जमानत मंजूर की जाएगी। हिरासत के लिए ईडी के आवेदन पर सुनवाई करते हुए, कोर्ट तभी ईडी को अनुमति दे सकती है, जब वह संतुष्ट हो कि हिरासत में पूछताछ जरूरी है, भले ही आरोपी को पीएमएलए की धारा 19 के तहत कभी गिरफ्तार नहीं किया गया हो। यह धारा ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग में साक्ष्यों के आधार पर गिरफ्तारी की शक्ति देती है। कोर्ट ने कहा, धारा 44 की शिकायत पर पीएमएलए की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराध का संज्ञान लेने के बाद, ईडी आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए धारा 19 में मिली शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकता।