एक ऐसा मंदिर जो आपको हैरान कर देगा….यह मंदिर हमारे भारत के सनातन धर्म की बहोत बड़ी मिसाल है.

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हमारे भारत देश में अनेकों ऐसे मंदिर है जो कई प्रकार के रहस्यों से भरे पड़े है।इन रहस्यों को न आज तक कोई सुलझा पाया है और न ही इसके पीछे की वजह कोई जान पाया है।आश्चर्य की बात यह है की इन रहस्यों और चमत्कारों का संबंध उस समय से है जब ना तो हमारे पास कोई टेक्नोलॉजी थी और न ही कोई सुविधाएं।फिर भी इन चमत्कारों को हमारे पूर्वजों ने ऐसी सटीक गणरा के साथ बनाया है कि आज तक इसका राज कोई नहीं जान पाया।ऐसे ही रहस्यों से भरा हुआ एक मंदिर हमारे दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के चिकमगलूर जिले के श्रृंगेरी में स्थित है।इस मंदिर का नाम विद्याशंकर मंदिर है।आज हम आपको इस रहस्यमई मंदिर की वास्तुकला और इतिहास से परिचित कराएंगे।

विद्याशंकर मंदिर कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले के श्रृंगेरी नामक स्थान पर स्थित है।यह मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला के लिए जाना जाता है।इस मंदिर के मठ को स्वयं शंकराचार्य ने स्थापित किया था।यह उनके स्थापित अद्वैत मठों में से एक है।श्री आदि शंकराचार्य के शिष्य सुरेश्वराचार्य इस मठ के पहले प्रमुख थे।यह मंदिर अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है।इसके अलावा यह बहुत से शिलालेख भी देखने को मिलेंगे जो द्रविड़, चालुक्य, दक्षिण भारतीय और विजयनगर स्थापत्य शैली को दर्शाते है।इस तीर्थ स्थल का निर्माण 1338 ई. में ‘विद्यारान्य‘ नामक एक ऋषि ने कराया था, जो विजयनगर साम्राज्य के संस्थापकों के संरक्षक थे और 14वीं सदी में यहां रहते थे।

मंदिर के बारह स्तम्भ

जो सबसे आश्चर्य करने वाली बात है वो है इस मंदिर के बारह स्तंभ।इस मंदिर में स्थापित बारह स्तंभ 12 राशि चक्रों के प्रतीक हैं।इन स्तंभों की नक्काशी और रूपरेखा खगोलीय अवधारणा को ध्यान में रखकर की गई है।ये सभी 12 स्तंभ एक आकार के नही बल्कि अलग अलग आकार के है।सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि जब हर सुबह सूर्य की किरणें निकलती है तो सिर्फ उसी माह की राशि वाले स्तंभ पर पड़ती है जो माह उस समय चल रहा होता है और माह के बदलते है सूर्य की किरणें अगले माह की राशि वाले स्तंभ पर पड़ती है।इनकी इतनी सटीक गरणा उस समय के दौरान कैसे की गई इसका पता कोई नही जानता।

विद्याशंकर मंदिर कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले के श्रृंगेरी नामक स्थान पर स्थित है।यह मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इस मंदिर के मठ को स्वयं शंकराचार्य ने स्थापित किया था।यह उनके स्थापित अद्वैत मठों में से एक है।श्री आदि शंकराचार्य के शिष्य सुरेश्वराचार्य इस मठ के पहले प्रमुख थे।यह मंदिर अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है।इसके अलावा यह बहुत से शिलालेख भी देखने को मिलेंगे जो द्रविड़, चालुक्य, दक्षिण भारतीय और विजयनगर स्थापत्य शैली को दर्शाते है।इस तीर्थ स्थल का निर्माण 1338 ई. में ‘विद्यारान्य‘ नामक एक ऋषि ने कराया था, जो विजयनगर साम्राज्य के संस्थापकों के संरक्षक थे और 14वीं सदी में यहां रहते थे।

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मंदिर के बारह स्तम्भ 

जो सबसे आश्चर्य करने वाली बात है वो है इस मंदिर के बारह स्तंभ।इस मंदिर में स्थापित बारह स्तंभ 12 राशि चक्रों के प्रतीक हैं।इन स्तंभों की नक्काशी और रूपरेखा खगोलीय अवधारणा को ध्यान में रखकर की गई है।ये सभी 12 स्तंभ एक आकार के नही बल्कि अलग अलग आकार के है।सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि जब हर सुबह सूर्य की किरणें निकलती है तो सिर्फ उसी माह की राशि वाले स्तंभ पर पड़ती है जो माह उस समय चल रहा होता है और माह के बदलते है सूर्य की किरणें अगले माह की राशि वाले स्तंभ पर पड़ती है।इनकी इतनी सटीक गरणा उस समय के दौरान कैसे की गई इसका पता कोई नही जानता।