साल 2025 का महाकुंभ मेला इस बार 45 दिनों का महाआयोजन है। उत्तर प्रदेश सरकार के एक आकलन के मुताबिक, लगभग 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है और शाही स्नान के समय इसकी जनसंख्या विश्व के 41 देशों से अधिक होगी।
आइए जानते हैं, कुंभ स्नान का विज्ञान क्या है?
कुंभ पर्व भारत का ही नहीं बल्कि विश्व का सबसे प्राचीन मेला है, जो वैदिक ज्योतिष की गणितीय गणना के अनुसार लगता है, जिसकी अपनी अलग धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। आज का विज्ञान कहता है कि बृहस्पति को सूर्य की परिक्रमा ने 12 साल लगते हैं और ये बात हमारे ऋषियों की बहुत पहले से पता है कि कुंभ का समय बृहस्पति ग्रह की गति पर ही निर्भर है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, कुंभ पर्व 4 स्थान पर आयोजित किए जाते हैं।
महाकुंभ 2025: पृथ्वी का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समागम
उत्तर प्रदेश सरकार के एक आकलन के मुताबिक, महाकुंभ मेला निर्विवाद रूप से सदियों से पृथ्वी पर होने वाला सबसे बड़ा आयोजन है। महाकुम्भ 2025 के 45 दिनों में लगभग 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। इतने बड़े महाआयोजन के लिए मेला क्षेत्र 4,000 हेक्टेयर में फैला है, जिसे 25 सेक्टरों में बांटा गया है। दुनिया में इस तरह का कोई आयोजन कहीं और नहीं होता है। उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि 3 दिन के लिए प्रयागराज की जनसंख्या दुनिया के 41 देशों से अधिक होगी। ये 3 दिन 29 जनवरी, 2025 को मुख्य शाही स्नान पर्व मौनी अमावस्या से पहले और उसके बाद के होंगे। इन तीन दिनों में लगभग साढ़े छह करोड़ श्रद्धालुओं के प्रयागराज में होने की उम्मीद लगाई गई है।
क्या है कुंभ स्नान का विज्ञान?
पंचांग और सौर माह की गणना पर आधारित तिथियों में होने वाले महाकुम्भ और उसके पवित्र स्नान के महात्म्य को वैज्ञानिक भी नकार नहीं पाए हैं। हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर घूम रही है इसलिए यह एक ‘अपकेंद्रिय बल’ यानी केंद्र से बाहर की ओर फैलने वाली ऊर्जा पैदा करती है। पृथ्वी के 0 से 33 डिग्री अक्षांश में यह ऊर्जा हमारे तंत्र पर मुख्य रूप से लम्बवत व उर्ध्व दिशा में काम करती है। खास तौर से 11 डिग्री अक्षांश पर तो ऊर्जाएं बिलुकल सीधे ऊपर की ओर जातीं हैं।
इसलिए हमारे प्राचीन गुरुओं और योगियों ने गुणा-भाग कर पृथ्वी पर ऐसी जगहों को तय किया, जहां इंसान पर किसी खास घटना का जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। इनमें अनेक जगहों पर नदियों का समागम है और इन स्थानों पर स्नान का विशेष लाभ भी है। अगर किसी खास दिन कोई इंसान वहां रहता है तो उसके लिए दुर्लभ संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं।
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कल्पवास का वैज्ञानिक महत्व
वैज्ञानिकों का मत है कि कल्पवास की 45 दिन की परंपरा लोगों की प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करती है। मानव प्राकृतिक रूप से एंटीजन (जीवाणुओं) को छोड़ता और उपभोग करता है। यह प्रक्रिया अपने चरम पर तब होती है जब कल्पवासी स्नान करते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ विशेष वजहाँ से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिनमें सूक्ष्म जीवों की अदला-बदली प्रमुख है। सूक्ष्म जीवों की इस अदला-बदली की प्रक्रिया तब व्यापक स्तर पर होती है जब एक के बाद एक हजारों लोग स्नान करते हैं। इस प्रक्रिया से कल्पवासियों का प्रतिरक्षी तंत्र मजबूत होता है।
इंसानों के बीच सूक्ष्म जीवों के इस अदला-बदली की प्रक्रिया जैसे ही शुरू होती है, तो शरीर इस प्रक्रिया का प्रतिरोध करता है। हमारे शरीर में मौजूद प्रतिरक्षी तंत्र नए एंटीजेन का प्रतिरोध करते हैं, इस क्रम में शरीर के अंदर एंटीबॉडी विकसित होते हैं। इस तरह से बीमारियों के खिलाफ शरीर मजबूत हो जाता है।