पर्वतवासिनी विन्ध्येश्वरी मां की आरती (Parvat Vasini Maa Vindheshwari ki Aarti)

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पर्वतवासिनी विन्ध्येश्वरी मां

पर्वतवासिनी विन्ध्येश्वरी मां की आरती
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।

कोई तेरा पार ना पाया ॥

पान सुपारी ध्वजा नारियल ।

ले तेरी भेंट चडाया ॥

॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ॥

सुवा चोली तेरी अंग विराजे ।

केसर तिलक लगाया ॥

॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ॥

नंगे पग मां अकबर आया ।

सोने का छत्र चडाया ॥

॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ॥

ऊंचे पर्वत बनयो देवालाया ।

निचे शहर बसाया ॥

॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ॥

सत्युग, द्वापर, त्रेता मध्ये ।

कालियुग राज सवाया ॥

॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ॥

धूप दीप नैवैध्य आर्ती ।

मोहन भोग लगाया ॥

॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ॥

ध्यानू भगत मैया तेरे गुन गाया ।

मनवंचित फल पाया ॥

सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।

कोई तेरा पार ना पाया ॥

विंध्यवासिनी देवी जन्म

श्रीमद्भागवत पुराण की कथा अनुसार देवकी के आठवें गर्भ से जन्में श्री कृष्ण को वसुदेवजी ने कंस से बचाने के लिए रातोंरात यमुना नदी को पार गोकुल में नन्दजी के घर पहुंचा दिया था तथा वहां यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं आदि पराशक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा के जेल में ले आए थे। बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर कंस के वध की भविष्यवाणी की और अंत में वह भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई।