श्री बाल कृष्ण जी की आरती (Sh Bal Krishna Ji ki Aarti)

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श्री बाल कृष्ण जी की आरती

श्री बाल कृष्ण जी आरती

बाल कृष्ण की कीजै,

अपना जन्म सफल कर लीजै ॥

श्री यशोदा का परम दुलारा,

बाबा के अँखियन का तारा ।

गोपियन के प्राणन से प्यारा,

इन पर प्राण न्योछावर कीजै ॥

॥आरती बाल कृष्ण की कीजै…॥

बलदाऊ के छोटे भैया,

कनुआ कहि कहि बोले मैया ।

परम मुदित मन लेत बलैया,

अपना सरबस इनको दीजै ॥

॥आरती बाल कृष्ण की कीजै…॥

श्री राधावर कृष्ण कन्हैया,

ब्रज जन को नवनीत खवैया ।

देखत ही मन लेत चुरैया,

यह छवि नैनन में भरि लीजै ॥

॥आरती बाल कृष्ण की कीजै…॥

तोतली बोलन मधुर सुहावै,

सखन संग खेलत सुख पावै ।

सोई सुक्ति जो इनको ध्यावे,

अब इनको अपना करि लीजै ॥

॥आरती बाल कृष्ण की कीजै…॥

आरती बाल कृष्ण की कीजै,

अपना जन्म सफल कर लीजै ॥

श्रीकृष्ण के बारे में 

श्रीकृष्ण, हिन्दू धर्म में भगवान हैं। वे विष्णु के 8वें अवतार माने गए हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता है। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है।

कारागार में भगवान श्री कृष्ण का जन्म-

कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे। देवकी कंस की बहन थी। कंस एक अत्याचारी राजा था। उसने आकाशवाणी सुनी थी कि देवकी के आठवें पुत्र द्वारा वह मारा जाएगा। इससे बचने के लिए कंस ने देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागार में डाल दिया। मथुरा के कारागार में ही भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनका जन्म हुआ। कंस के डर से वसुदेव ने नवजात बालक को रात में ही यमुना पार गोकुल में यशोदा के यहाँ पहुँचा दिया। गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता थे।

बाल्यावस्था में ही उन्होंने बड़े-बड़े कार्य किए जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। अपने जन्म के कुछ समय बाद ही कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना का वध किया , उसके बाद शकटासुर, तृणावर्त आदि राक्षस का वध किया। बाद में गोकुल छोड़कर नंद गाँव आ गए वहां पर भी उन्होंने कई लीलाएं की जिसमे गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला आदि मुख्य है। इसके बाद मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और रणक्षेत्र में ही उन्हें उपदेश दिया।

 

124 वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनके अवतार समाप्ति के तुरंत बाद परीक्षित के राज्य का कालखंड आता है। राजा परीक्षित, जो अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा अर्जुन के पौत्र थे, के समय से ही कलियुग का आरंभ माना जाता है।