क्या होता है रूद्रमणि ?

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क्या होता है रूद्रमणि ?

क्या होता है रूद्रमणि – ‌ रुद्राक्ष का ऊपरी हिस्सा ब्रह्मा है मध्य भाग में शिव है एवं निचले हिस्से में विष्णु स्थापित है। रुद्राक्ष के फल के बीच जो छिद्र है उसे देव मार्ग कहा जाता है। रुद्राक्ष एवं मनुष्य का मस्तिष्क बिल्कुल एक जैसे दिखते हैं। मनुष्य के अंदर इतनी नकारात्मक शक्तियों का भंडार है कि अगर वह नियंत्रित ना की जाए तो मनुष्य चलता फिरता विध्वंस का एक पिंण्ड बन जाता है।
प्राकृतिक प्रकोप से ज्यादा खतरा नहीं है

क्योंकि वह तो कभी कभार आते हैं परंतु मस्तिष्क के अंदर उठने वाले ज्वालामुखी आंधी तूफान भूकंप आंतरिक सुनामी लहरें आंतरिक ज्वार भाटे इत्यादि अत्यधिक विप्लवकारी हैं। इन सब आंतरिक प्रकोपो को नियंत्रित करने के लिए अध्यात्म अत्यधिक आवश्यकता है। विशेषकर शैवपासना एवं रुद्राक्ष शैवोपासना का मुख्य अंग है इन्हें धारण करने से दिव्य शैव शाक्त संवेग मस्तिष्क के गुह्यतम भागों में जाकर मस्तिष्क को शांत, सरल एवं आनंदमई स्थिति प्रदान करते हैं। 

रूद्रमणि

रुद्राक्ष दिव्य वनों में वनस्पति के रूप में उगने वाली शिवनिधि है। आकाश में विद्युत के रूप में गर्जन करती उमा, विद्युत प्रकाश के रूप में नाना आकृतियो को आकाश में चित्रित करती उमा,वर्षा के बादल बनकर शिव रूपी पर्वतों को अपने आप में समेटती उमा, वर्षा की बूंदे बनकर पर्वत रूपी शिवलिंगो का अभिषेक करती उमा, मंद मंद प्राणवायु के रूप में शीतलता के साथ हिमालय से लगी पर्वत श्रृंखलाओ पर अटखेलियां करती उमा।

झरनों की धारा के रूप में रिसती उमा, चंद्रमा के पूर्ण प्रकाश में षोडशी कला के रूप में प्रकाशित होती हुई उमा सूर्य की प्रथम किरणों के द्वारा सूर्य मंडल के मध्य से नीले आभा मण्डल के साथ उत्सर्जित होती उमा को ग्रहण करते हैं रुद्राक्ष के वृक्ष में बैठे हुए सदाशिव और इस प्रकार भगवती त्रिपुर सुंदरी अपने नाना अमृतधारी रूपों की लेखनी बनकर
प्रत्येक रूद्र मणि पर कुछ ना कुछ विचित्र लेखन कर ही देती है
यही प्रत्येक रुद्राक्ष फल के एक अलग आकृति लिए हुए होने का रहस्य है।

रुद्राक्ष की महिमा

 

भगवती त्रिपुर सुंदरी रुद्राक्ष के फलो से अठखेलियां करती है उसे विकसित करती है उसे पुष्ट करती है, उसे रूप देती है उसे निहारती है एवं उसे अपनी अनंत कलाओं से युक्त करती है। रूद्राक्ष के अंदर ब्रह्मांड की सबसे दुर्लभ एवं मूल षोडशी कला निहित है, षोडशी कला को ही नित्या कहा जाता है रुद्राक्ष धारण करने का सबसे प्रमुख कारण यह है
कि वह जातक को नित्य, शुद्ध-बुद्ध एवं प्रबुद्ध रखते हैं
और उनकी नित्यता पर आच नहीं आती।

 

 

समुद्र मंथन का घोर कर्म चल रहा था महाबली राहुल ने समस्त देवताओं के साथ कमलनयन विष्णु की भी आंखों को भ्रम में डाल दिया। महाबली राहु देवताओं की पंक्ति में बैठ गए और विष्णु के नयन भी उन्हें नहीं पहचान पाएं
परंतु सूर्य और चंद्र ने इशारा कर दिया तब जाकर विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट दिया परंतु तब तक वह अमृत पान कर चुका था।

राहु के उसके सामान १०० महाबली भाई है और वे सब के सब चंद्रमा को खाने दौडे।
पर चंद्रमा शिव की शरण में चले गए। शिवजी ने उन्हें मस्तक पर धारण कर लिया परंतु पीछे पीछे राहु भी चले आए
वह भी भगवान शिव की स्तुति करने लगे और चंद्रमा को मांगने लगे।
शिव जी ने राहुल को भी मस्तक पर धारण कर लिया
परंतु इस धारण करने की लीला के परिणाम बड़े विचित्र निकले।

 

राहु को देख अमृत युक्त चंद्रमा स्त्रावित हो गया
और जैसे ही अमृत राहु पर गिरा राहु के अनेकों सिर उग आए।
शिवजी मुस्कुरा दिए एवं उन्होंने राहु के सिर को तोड़कर एक माला बना ली
और उसका नाम दिया देव कार्य सिद्धि माला।

 

रुद्राक्ष की कृपा

 

 

रुद्राक्ष वास्तव में राहु के सिरों का प्रतीक है
इसलिए ब्रह्मांड में जहां भी शिवलिंग स्थापित होते हैं
वे रुद्राक्ष मालाओं से सुसज्जित होते हैं। राहु घोर अंधकार का प्रतीक है
एवं अंधकार को प्रत्येक तल पर हरती है रुद्राक्ष की मालाएं।
मस्तिष्क का उच्चतम तल क्या है? संपूर्ण प्रकाश निर्दोष प्रकाश।
वही महामानव है जिसने की अपने मस्तिष्क के प्रत्येक तल को संपूर्ण रूप से प्रकाशित कर लिया है।
वही सिद्ध है वही जगद्गुरु है वही परम चैतन्य है जो प्रत्येक तल पर पूर्ण प्रकाश युक्त है।