मां कामाख्या का विश्व प्रसिध्द अंबुबाची मेला
मां कामाख्या का विश्व प्रसिध्द अंबुबाची मेला – पौराणिक मान्यता के अनुसार,भगवान विष्णु ने जब देवी सती के शव को अपने सुदर्शन चक्र से काटा तो उनके शरीर के 51हिस्से धरती पर गिरे और जहां जहां वे टुकडे़ गिरे ,वहां-वहां देवी की सिध्दपीठ स्थापित हुई।माता के योनि का भाग जहां गिरा उसे ’कामरुप’ कहा गया जा अब दुनियाभर में कामख्या सिध्दपीठ के नाम से प्रसिध्द है।
आपको बता दें कि हर साल की तरह इस साल भी यहां अंबुबाची मेला 22 जून से शुरु हो रहा है जो कि 25 जून तक चलेगा और 26 को प्रसाद वितरण होगा। हर साल इस मेले में दुनिया के कोने कोने से तांत्रिक तंत्र साधना और सिध्दियों के लिए आते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जो तंत्र साधना कहीं पूरी नहीं होती वह इस मेले के दौरान कामख्या मां के दरबार में पूरी हो जाती है।यह मंदिर असम के गुवाहाटी में स्थित है
और खास तौर से तंत्र साधना के लिए ही प्रसिध्द है।
कहा जाता है कि जब मां राजस्वला होती हैं
तो मंदिर के अंदर बिछाया गया श्वेत वस्त्र स्वयं लाल हो जाता है
और उसे ही भक्तों को प्रसाद स्वरुप माना जाता है।
कामाख्या मंदिर के बारे में
कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से ८ किलोमीटर दूर कामाख्या में है। कामाख्या से भी १० किलोमीटर दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है [3] व इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है।
पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल
अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है।
यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
देश भर मे अनेकों सिद्ध स्थान है
जहाँ माता सुक्ष्म स्वरूप मे निवास करती है
प्रमुख महाशक्तिपीठों मे माता कामाख्या का यह मंदिर सुशोभित है हिंगलाज की भवानी, कांगड़ा की ज्वालामुखी, सहारनपुर की शाकम्भरी देवी, विन्ध्याचल की विन्ध्यावासिनी देवी आदि महान शक्तिपीठ श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र एवं तंत्र- मंत्र, योग-साधना के सिद्ध स्थान है।
यहाँ मान्यता है,
कि जो भी बाहर से आये भक्तगण जीवन में तीन बार दर्शन कर लेते हैं
उनके सांसारिक भव बंधन से मुक्ति मिल जाती है ।
” या देवी सर्व भूतेषू मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।