श्री शनि देव जी की आरती नरसिंह कुंवर की
श्री शनि देव जी आरती कीजै नरसिंह कुंवर की ।
वेद विमल यश गाउँ मेरे प्रभुजी ॥
पहली आरती प्रह्लाद उबारे ।
हिरणाकुश नख उदर विदारे ॥
दुसरी आरती वामन सेवा ।
बल के द्वारे पधारे हरि देवा ॥
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे ।
सहसबाहु के भुजा उखारे ॥
चौथी आरती असुर संहारे ।
भक्त विभीषण लंक पधारे ॥
पाँचवीं आरती कंस पछारे ।
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले ॥
तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा ।
हरषि-निरखि गावे दास कबीरा ॥
शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। अनुराधा नक्षत्र के स्वामी शनि हैं।