इंद्र देव के नाम
इंद्र देव के नाम
अमरेष
अमरिश
अव्याशू
दत्ते
देवेश
देवराज
इंद्राकांता
महेंद्र
इंद्र देव
इंद्रार्जुनइन्द्र (या इंद्र) हिन्दू धर्म में सभी देवताओं व स्वर्ग के राजा का सबसे उच्च पद है[1] जिसकी एक अलग ही चुनाव-पद्धति थी। इस चुनाव पद्धति के विषय में स्पष्ट वर्णन उपलब्ध नहीं है। वैदिक साहित्य में इन्द्र भगवान को सर्वोच्च महत्ता प्राप्त है लेकिन पौराणिक साहित्य में इनकी महत्ता निरन्तर क्षीण होती गयी और त्रिदेवों की श्रेष्ठता स्थापित हो गयी।
ऋग्वेद के लगभग एक-चौथाई सूक्त इन्द्र भगवान से सम्बन्धित हैं। 250 सूक्तों के अतिरिक्त 50 से अधिक मन्त्रों में उसका स्तवन प्राप्त होता है। वह ऋग्वेद का सर्वाधिक लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण देवता है। उसे आर्यों का राष्ट्रीय देवता भी कह सकते हैं। मुख्य रूप से वह वर्षा का देवता है जो कि अनावृष्टि अथवा अन्धकार रूपी दैत्य से युद्ध करता है तथा अवरुद्ध जल को अथवा प्रकाश को विनिर्मुक्त बना देता है।
वह गौण रूप से आर्यों का युद्ध-देवता भी है, जो आदिवासियों के साथ युद्ध में उन आर्यों की सहायता करता है। इन्द्र भगवान का मानवाकृतिरूपेण चित्रण दर्शनीय है। उसके विशाल शरीर, शीर्ष भुजाओं और बड़े उदर का बहुधा उल्लेख प्राप्त होता है। उसके अधरों और जबड़ों का भी वर्णन मिलता है। उसका वर्ण केश हरित व दाढ़ी भी हरित्वर्णा है। वह स्वेच्छा से विविध रूप धारण कर सकता है ऋग्वेद इन्द्र के जन्म पर भी प्रकाश डालता है। पूरे दो सूक्त इन्द्र भगवान के जन्म से ही सम्बन्धित हैं। ‘निष्टिग्री’ अथवा ‘शवसी’ नामक गाय को उसकी माँ बतलाया गया है।उसके पिता ‘द्यौः’ या ‘त्वष्टा’ हैं। एक स्थल पर उसे ‘सोम’ से उत्पन्न कहा गया है। उसके जन्म के समय द्यावा-पृथ्वी काँप उठी थी। इन्द्र भगवान के जन्म को विद्युत् के मेघ-विच्युत होने का प्रतीक माना जा सकता है।
इन्द्र भगवान के सगे-सम्बन्धियों
इन्द्र भगवान के सगे-सम्बन्धियों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। अग्नि और पूषन् उसके भाई हैं इसी प्रकार इन्द्रात्नी है। संभवतः ‘इन्द्राणी ‘ नाम परम्परित रूप से पुरुष (पति) के नाम का स्त्रीवाची बनाने से ही है मूल नाम कुछ और (‘शची’) हो सकता है। मरुद्गण उसके मित्र तथा सहायक हैं। उसे वरुण, वायु, सोम, बृहस्पति, पूषन् और विष्णु के साथ युग्मरूप में भी कल्पित किया गया है तीन चार सूक्तों में वह सूर्य का प्रतिरूप है।
भगवान एक वृहदाकार देवता है। उसका शरीर पृथ्वी के विस्तार से कम से कम दस गुना है।
वह सर्वाधिक शक्तिमान् है। इसीलिए वह सम्पूर्ण जगत् का एक मात्र शासक और नियन्ता है।
उसके विविध विरुद शचीपति (=शक्ति का स्वामी), शतक्रतु (=सौ शक्तियों वाला) और शक्र (=शक्तिशाली), आदि
उसकी विपुला शक्ति के ही प्रकाशक हैं।