भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्तशासी संस्थान पुणे के अगहरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (एआरआई) के वैज्ञानिकों ने एक प्रकार के गेहूं की बायोफोर्टीफाइड किस्म एमएसीएस 4028 विकसित की है, जिसमें उच्च प्रोटीन है। गेहूं की किस्म में सुधार पर एआरआई वैज्ञानिकों के समूह द्वारा विकसित गेहूं की किस्म में लगभग 14.7 प्रतिशत उच्च प्रोटीन, बेहतर पोषण गुणवत्ता के साथ जस्ता (जिंक) 40.3 पीपीएम, और क्रमशः 40.3 पीपीएम और 46.1 पीपीएम लौह सामग्री, पिसाई की अच्छी गुणवत्ता और पूरी स्वीकार्यता है।
एमएसीएस 4028, जिसे विकसित करने की जानकारी इंडियन जर्नल ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग में प्रकाशित की गई थी, एक अर्ध-बौनी (सेमी ड्वार्फ) किस्म है, जो 102 दिनों में तैयार होती है और जिसमें प्रति हेक्टेयर 19.3 क्विंटल की श्रेष्ठ और स्थिर उपज क्षमता है। यह डंठल, पत्तों पर लगने वाली फंगस, पत्तों पर लगने वाले कीड़ों, जड़ों में लगने वाले कीड़ों और ब्राउन गेहूं के घुन की प्रतिरोधी है। एमएसीएस 4028 किस्म को संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपात कोष (यूनीसेफ) के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र (केवीके) कार्यक्रम द्वारा भी स्थायी रूप से कुपोषण दूर करने के लिए शामिल किया गया है और यह कुपोषण मुक्त भारत, राष्ट्रीय पोषण रणनीति की संकल्पना 2022 को बढ़ावा दे सकता है।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष भूख से निपटने का एक प्रयास जारी है जिसमें ‘कुपोषण मुक्त भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए परम्परागत पौधों की प्रजनन पद्धति का उपयोग किया जा रहा है। गेहूं की किस्म एमएसीएस 4028 को फसल मानकों पर केन्द्रीय उप-समिति द्वारा अधिसूचित किया गया है, महाराष्ट्र और कर्नाटक को शामिल करते हुए समय पर बुवाई के लिए कृषि फसलों की किस्में जारी करने (सीवीआरसी), प्रायद्वीपीय क्षेत्र की बारिश की स्थिति के लिए अधिसूचना जारी की गई है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने भी वर्ष 2019 के दौरान बायोफोर्टीफाइड श्रेणी के तहत इस किस्म को टैग किया है। जयश्री गोविंद जाधव जो एक एक महिला किसान हैं ,वे महाराष्ट्र के पुणे के मोरगाँव जिले में बायोफोर्टीफाइड गेहूं की किस्म एमएसीएस 4028 की खेती के माध्यम से अपने परिवार की पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करती है। भारत में गेहूँ की फसल छह विविध कृषि मौसमों के अंतर्गत उगाई जाती है। भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र (महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों) में गेहूं की खेती प्रमुख रूप से वर्षा आधारित और सीमित सिंचाई परिस्थितियों में की जाती है।
ऐसी परिस्थितियों में फसल को नमी की मार झेलनी पड़ती है। इसलिए, सूखा-झेलने वाली किस्मों की उच्च मांग है। अखिल भारतीय समन्वित गेहूं और जौ सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत, अगहरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे में वर्षा की स्थिति में अधिक पैदावार वाली, जल्द तैयार होने वाली और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्में विकसित करने के प्रयास किए जाते हैं। यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा नियंत्रित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के जरिये संचालित है। एमएसीएस 4028 किसानों के लिए इस तरह के प्रयासों का परिणाम है।
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भरत पांडेय