
आज लाखों श्रद्धालु रुद्राक्ष धारण करते हैं। कोई पंचमुखी रुद्राक्ष स्वास्थ्य के लिए, कोई सप्तमुखी रुद्राक्ष धन और समृद्धि के लिए, तो कोई एकमुखी रुद्राक्ष शिव कृपा की प्राप्ति हेतु धारण करता है।
परंतु शास्त्रों के अनुसार, रुद्राक्ष धारण करने से पहले उसकी विधिवत शुद्धि और सिद्धि अत्यंत आवश्यक मानी गई है। ऐसा न करने पर कई लोगों को अपेक्षित लाभ नहीं मिलता, बल्कि कुछ मामलों में मानसिक अशांति, चिड़चिड़ापन, नींद की कमी या अन्य परेशानियाँ महसूस होने लगती हैं।
रुद्राक्ष से जुड़ी सबसे सामान्य गलती
सबसे बड़ी गलती है — बिना सिद्धि और अभिषेक के सीधे रुद्राक्ष धारण करना।
अक्सर लोग बाजार या ऑनलाइन रुद्राक्ष खरीदकर बिना किसी धार्मिक विधि के सीधे पहन लेते हैं। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार, ऐसा रुद्राक्ष पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं होता और आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित कर सकता है।
शास्त्रानुसार मान्यता
गुरु परंपरा में कहा गया है कि रुद्राक्ष शिव तत्व से जुड़ा है, और उसे धारण करने से पहले शिव तत्व से जोड़ना आवश्यक है। इसी प्रक्रिया को सिद्धि या जागरण कहा जाता है।
रुद्राक्ष सिद्ध करने की पारंपरिक विधि
(यह विधि धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है)
- सिद्धि सोमवार या महाशिवरात्रि से प्रारंभ करना शुभ माना जाता है
- रुद्राक्ष को कच्चे दूध और गंगाजल में रात्रि भर भिगोकर रखें
- प्रातः स्नान कर शिवलिंग के समक्ष बैठें
- रुद्राक्ष को गंगाजल से शुद्ध करें
- शिवलिंग पर रखकर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से अभिषेक करें
- अभिषेक के समय मंत्र का 108 बार जप करें
- इसके बाद रुद्राक्ष को लाल धागे या चांदी की चेन में पिरोकर धारण करें
- धारण करते समय गायत्री रुद्र मंत्र का 11 बार जप करें
रुद्राक्ष धारण करते समय पालन योग्य नियम
- रुद्राक्ष को अपवित्र स्थान पर न रखें
- शौच, मांस-मदिरा सेवन या शारीरिक संबंध के समय उतार देना शास्त्रसम्मत माना गया है
- इसे नियमित रूप से गंगाजल से शुद्ध करें
- प्रत्येक सोमवार “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप करें
- क्रोध या असत्य बोलते समय रुद्राक्ष को हाथ न लगाने की परंपरा बताई गई है
निष्कर्ष
यदि आपने रुद्राक्ष बिना विधिवत शुद्धि के धारण किया है और असहजता अनुभव कर रहे हैं, तो शास्त्रसम्मत विधि से पुनः शुद्धि और सिद्धि कर धारण करना लाभकारी माना जाता है।
यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है तथा इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ाना है।













