
केंद्र सरकार ने औषधि निर्माण और वितरण क्षेत्र में पारदर्शिता बढ़ाने तथा फर्जीवाड़े पर नकेल कसने के लिए दवा नियमों में बड़ा संशोधन किया है। अब किसी भी दवा कंपनी या वितरक द्वारा फर्जी दस्तावेज़ या गलत जानकारी देने पर उसका लाइसेंस तत्काल प्रभाव से रद्द किया जा सकेगा।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस संबंध में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 में संशोधन की अधिसूचना जारी की है। नए प्रावधानों के तहत दवा निर्माण या बिक्री के लिए दी जाने वाली लाइसेंस आवेदन प्रक्रिया में प्रस्तुत सभी दस्तावेजों की सख्त सत्यापन प्रक्रिया लागू की जाएगी। किसी भी स्तर पर गलत या भ्रामक जानकारी पाए जाने पर कानूनी कार्रवाई के साथ-साथ लाइसेंस रद्द करने की व्यवस्था की गई है।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हाल के वर्षों में दवा उद्योग में फर्जी प्रमाणपत्र, नकली अनुमोदन और गलत दस्तावेज़ों के मामले बढ़े हैं। ऐसे में यह संशोधन उपभोक्ता सुरक्षा और गुणवत्ता नियंत्रण की दिशा में आवश्यक कदम है। उन्होंने कहा, सरकार ने दवाओं की गुणवत्ता से कोई समझौता न करने की नीति अपनाई है। किसी भी कंपनी को नियमों से खिलवाड़ की अनुमति नहीं दी जाएगी।
संशोधित नियमों के तहत अब औषधि निर्माण इकाइयों को अपने उत्पादों की गुणवत्ता से जुड़ी सभी सूचनाएं डिजिटल माध्यम से समय-समय पर अपलोड करनी होंगी। लाइसेंस जारी करने से पहले साइट निरीक्षण और दस्तावेज़ सत्यापन को अनिवार्य कर दिया गया है। वहीं, राज्यों के औषधि नियंत्रकों को कंपनियों का नियमित ऑडिट करने और अनियमितता मिलने पर तुरंत कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस निर्णय से देश में फर्जी औषधि निर्माण और वितरण पर रोक लगेगी। इससे न केवल मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी बल्कि भारतीय दवा उद्योग की वैश्विक साख भी मजबूत होगी।
उद्योग संगठनों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह कदम दवा क्षेत्र को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की दिशा में अहम सुधार साबित होगा।












