
अमेरिका में एच-1बी वीजा की फीस बढ़ाने के प्रस्ताव के खिलाफ विरोध शुरू हो गया है। अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स ने संघीय अदालत में मुकदमा दायर कर सरकार के इस कदम को चुनौती दी है। संगठन का कहना है कि प्रस्तावित शुल्क वृद्धि अमेरिकी कंपनियों और अंतरराष्ट्रीय पेशेवरों दोनों पर गंभीर वित्तीय दबाव डालेगी और इसका असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक होगा।
चैंबर ऑफ कॉमर्स ने तर्क दिया कि एच-1बी वीजा अमेरिकी कंपनियों के लिए विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करने का प्रमुख माध्यम है, और अचानक फीस बढ़ाने से कई व्यवसायों को भारी आर्थिक झटका लग सकता है। संगठन का कहना है कि यह कदम व्यापारिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, अमेरिकी सरकार एच-1बी वीजा की सामान्य फीस के साथ-साथ अतिरिक्त शुल्क भी बढ़ाने की तैयारी में है। हालांकि अभी तक आधिकारिक तौर पर नई फीस घोषित नहीं की गई है, लेकिन विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे कंपनियों को हजारों डॉलर का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रस्ताव से छोटे और मध्यम व्यवसायों के लिए विदेशी विशेषज्ञों की भर्ती कठिन हो सकती है। वहीं, पहले से अमेरिका में काम कर रहे विदेशी पेशेवरों को भी वित्तीय और प्रशासनिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
आईटी और तकनीकी क्षेत्र की कई बड़ी कंपनियों ने भी इस कदम पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि अतिरिक्त वीजा शुल्क उनकी भर्ती योजनाओं और परियोजनाओं पर असर डाल सकता है, जिससे विदेशी पेशेवरों की संख्या में कमी आएगी और अमेरिकी प्रतिभाओं के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
वहीं, अमेरिकी कर्मचारी और आव्रजन विभाग (USCIS) का कहना है कि वीजा फीस में बदलाव का उद्देश्य प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना और सरकारी लागत को पूरा करना है। हालांकि, चैंबर ऑफ कॉमर्स और कई व्यापारिक संगठनों का कहना है कि यह कदम व्यावसायिक संतुलन को बिगाड़ सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह मुकदमा आने वाले समय में अमेरिका की एच-1बी वीजा नीति और विदेशी पेशेवरों की भर्ती के भविष्य को प्रभावित कर सकता है। अदालत के फैसले तक इस मुद्दे पर गहन बहस जारी रहने की संभावना है।