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कछुआ सत्वगुण का प्रतीक है। कछुए ने भगवान विष्णु के सामने समर्पण कर दिया था। इसलिए कछुए की गर्दन हमेशा नीचे की ओर झुकी रहती है।
कछुए की विशेषताएँ:
एक कछुए के 6 अंग होते हैं (4 पैर 1 मुंह 1 पूंछ = 6) और एक इंसान के 6 शत्रु होते हैं – काम, क्रोध, काम, लोभ, मोह और ईर्ष्या भक्त को यह सब छोड़कर मंदिर में आना चाहिए, जैसे कछुआ यह सब छोड़कर मंदिर में सिर झुकाकर आता है। कुछ मंदिरों में कछुए की गर्दन उठी हुई दिखाई देती है। गर्दन उठाने का मतलब है कुंडलिनी जागृत करना।
आध्यात्मिक उत्थान की इच्छा जागृत करने के लिए कछुआ हमेशा मंदिर में रहता है। जिस प्रकार एक कछुआ अपनी सभी इंद्रियों को इच्छानुसार सिकोड़ सकता है, उसी प्रकार एक भक्त के लिए मंदिर में भगवान के सामने जाते समय संयम रखना और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना महत्वपूर्ण है। कछुआ हमें सिखाता है कि इंद्रियों पर नियंत्रण के बिना ईश्वर की भक्ति संभव नहीं है।
गीता में भी इसका उल्लेख है:
यदा संहारते चायं कूर्मोऽङगणीव सर्वशः। इन्द्रियाणिन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।
जिस प्रकार कछुआ अपने विभिन्न अंगों को अपने भीतर सिकोड़ लेता है, उसी प्रकार योगी अपनी इंद्रियों को अपने भीतर के विषयों से पूरी तरह हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थित मानी जाती है। मंदिर में प्रवेश करते समय कछुए का अभिवादन किया जाता है। उनके दर्शन करने के बाद ही मंदिर में प्रवेश किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि भगवान की सच्ची कृपा कछुए के गुणों को अपने अंदर भरने के बाद ही होती है।