हिन्दू राष्ट्र

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मेघालय हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, कानून मंत्री और संसद से ऐसा कानून बनाने की सिफारिश की हैं जिससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, ईसाई, पारसी, जयंतिया, खासी तथा गारो लोगों को बिना किसी सवाल या दस्तावेज के देश की नागरिकता मिल सके।

हालांकि फिलहाल यह छह महीने यहां रहने पर मिल सकती है। न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी लिखा है कि देश का विभाजन ही धर्म के आधार पर हुआ था। पाकिस्तान ने स्वयं को इस्लामिक देश घोषित कर दिया था।

ऐसे में उसी समय भारत को भी हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिये था, लेकिन इसे धर्म निरपेक्ष बनाए रखा गया। मात्र एक सदस्यीय मेघालय उच्चन्यायालय ने उक्त संस्तुति अमन राणा नामक व्यक्ति की उस याचिका की सुनवाई के दौरान की जिसमें उसे निवास प्रमाण पत्र देने से इंकार कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति एसआर सेन ने अपने 37 पृष्ठ के निर्णय में कहा कि इन तीनों पड़ोसी देशों में उपर्युक्त लोग आज भी उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं और उन्हें सामाजिक सम्मान भी नहीं मिल रहा। कोर्ट ने कहा कि इन लोगों को कभी भी देश में आने की अनुमति दी जाए। सरकार इन्हें पुनर्वासित कर सकती है और भारत का नागरिक घोषित कर सकती है।

उनके इस फैसले पर राजनीतिक क्षेत्र ही नहीं बल्कि न्यायिक क्षेत्र में भी त्वरित प्रतिक्रिया का दौर शुरू हो चुका है। जहां केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस फैसले का स्वागत किया है,

वहीं ऑल इण्डिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष  और हैदराबाद से संसद सदस्य सैयद असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले को अस्वीकार्य बताते हुए कहा कि इससे नफरत फैलेगी।

उच्चतम न्यायलय के वरिष्ठ अधिवक्ता  राजकुमार गुप्ता का कहना है कि देश के संविधान ने प्रत्येक उच्चन्यायालय को पूरी आजादी दी है कि वह संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत रिट पिटीशन में समुचित फैसला दे सकता है। उन्होंने न्यायमूर्ति सेन की सिफारिश के अनुसार संसद व्दारा अपेक्षित कानून बनाने की सिफारिश को अविलंब  अमलयोग्य बताया और कहा कि धर्मनिरपेक्षता हिन्दुत्व का प्राणतत्व है।

न्यायमूर्ति सेन का यह वाक्य तो विशेष रूप से उल्लेखनीय है, मैं यह स्पष्ट करता हूं कि किसी को भी भारत को एक और इस्लामिक देश बनाने की कोशिश  नहीं करनी चाहिये, अन्यथा यह भारत और विश्व के लिये प्रलय का दिन होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली ये सरकार ही केवल इस मामले की गंभीरता को समझेगी और यथोचित कदम उठाएगी

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता राजकुमार गुप्ता के इस कथन, कि  धर्मनिरपेक्षता हिन्दुत्व का प्राणतत्व है, पर साहस के साथ विचार करने का समय़  आ गया है। हिन्दू राष्ट्र के निर्माण का अर्थ अन्य धर्म राज्यों की भांति नहीं लिया जाना चाहिये, जहां एक धर्म पुस्तक के आधार पर मजहब विकसित किए गये हैं। हिन्दुत्व कोई मजहब नहीं वरन ऐसी जीवन शैली है जिसकी अपने निरंतर परिष्कार की प्रवृत्ति है। यदि भारत हिन्दू राष्ट्र बनने की दिशा में अपने पग बढ़ाने का प्रयास करता है तो वस्तुत:  यह धर्मांधता की कुत्सित प्रवृत्तियों पर रोक लगाने की दिशा में व्यावहारिक और समयानुकूल कदम होगा।

वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस वैचारिक पृष्ठभूमि से आते हैं, उसमें भी यही माना जाता है कि हिन्दुत्व मात्र जीवन जीने का तरीका है। यह कोई मजहब नहीं बल्कि ऐसी राष्ट्रीयता का नाम है जिसका वसुधैव कुटुम्बकम का सदैव उद्घोष रहा है। 

 

अनिल गुप्ता

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