नवरात्रि में क्यों बनते हैं हलवा-पूरी और काले चने? जानिए इसके धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

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शारदीय नवरात्रि अब अपने अंतिम पड़ाव पर है। 1 अक्टूबर को महानवमी के साथ यह पर्व संपन्न हो जाएगा। नवरात्रि के दौरान अष्टमी और नवमी के दिन मां दुर्गा को भोग लगाने और कन्या पूजन में हलवा, काले चने और पूरी का प्रसाद बनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

अक्सर लोग सोचते हैं कि देवी मां को सिर्फ यही तीन प्रसाद क्यों चढ़ाए जाते हैं? इसका उत्तर केवल धार्मिक मान्यता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पहलू भी जुड़े हुए हैं।

क्यों खास है यह प्रसाद?

  • काले चने – शक्ति और स्वास्थ्य का प्रतीक माने जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों में भी देवी को चना प्रिय बताया गया है। भक्त इसे अर्पित कर ऊर्जा और बल की प्राप्ति की कामना करते हैं।
  • हलवा – इसका मीठा स्वाद जीवन में सुख, समृद्धि और संतोष का प्रतीक है। देवी को हलवा अर्पित करने से घर-परिवार में आनंद और शांति आने की मान्यता है।
  • पूरी – यह भक्ति, उत्साह और सेवा भाव का प्रतीक है। पूरी के साथ प्रसाद परोसे जाने से यह संदेश मिलता है कि भोजन संतुलित और पूर्ण होना चाहिए।

कन्या पूजन की परंपरा

महाष्टमी और नवमी के दिन घरों में छोटी-छोटी कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें यही प्रसाद खिलाया जाता है। माना जाता है कि कन्याओं में मां दुर्गा का स्वरूप होता है और उन्हें यह भोजन कराना देवी को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम तरीका है।

हलवा, पूरी और चने का यह प्रसाद केवल भोजन नहीं है, बल्कि श्रद्धा, ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक है। यही कारण है कि नवरात्रि के अंतिम दिनों में इस विशेष प्रसाद को देवी मां और कन्याओं को अर्पित करने की परंपरा आज भी पूरे देश में उतनी ही आस्था के साथ निभाई जाती है।