जो खाएगा वो जाएगा !

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 उत्तराखंड के चुनावों में अब एक साल से भी कम का  समय बचा है, किसान आंदोलन के बहाने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पहाड़ी जमीन पर अपनी जड़ें मजबूत करने में जुटी हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड क्रांति दल का वर्चस्व बना रही है, लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे औऱ उनके अधूरे कार्यकाल के बाद राज्य में भाजपा की क्या स्थिति है, आईये उसपर नजर डालते हैं….

भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की बात कहकर पिछले चार साल से अपनी पीठ थपथपाने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत जी खुद को भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच से बचाने की जुगत में लगे रहे । क्योंकि अदालत में एक पत्रकार पर केस करवाने के लिए पहुंची उत्तराखंड पुलिस को अदालत ने रावत व अन्य पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया था। इसके बाद भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की बात करने वाले रावत साहब चाहते थे कि उनपर केस ना हो क्योंकि जांच सीबीआई को सौंपी जा चुकी है।

वहीं दूसरी ओर हरिद्वार में भाजपा विधायक यतिस्वरानंद भी खुद की ही सरकार के होते हुए कोरोना के दौरान हुई मास्क और सेनेटाइजर की खरीद फरोख्त को लेकर डीएम पर आरोप मढने में जुटे हैं। उनका आरोप तो ये भी है कि जब से उन्होंने शिकायत की है, कार्यवाही की बजाए अधिकारी का प्रमोशन हो चुका है।

वहीं मंत्री हरक सिंह रावत का श्रम मंत्रालय भी सवालों के घेरे में इस कदर फंस चुका था कि जिस कंपनी को 2 करोड़ रुपये दिए गए, उससे वापस लेने की नौबत आन पड़ी। 20 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट पर ऑडिट के दौरान सवाल उठे थे।

सरकार की शिक्षा छात्रवृति में भी घोटाले की बातें सामने आ चुकी हैं उधम सिंहनगर में छात्रवृति पा रहे ज्यादातर छात्रों में 100 से अधिक को SIT नोटिस भेज चुकी है।

भ्रष्टाचार पर सियासी तलवारें खिंची हुई हैं, कांग्रेस अपना दबदबा बनाने के लिए भाजपा पर लगातार हमले तेज कर रहा है, वहीं दूसरी ओर आज त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा बुलंद हो गया…ना खाउंगा, ना खाने दुंगा…