तमिलनाडु का अनोखा मंदिर, जहां ‘गन्ने के भगवान’ से मिलती है डायबिटीज से राहत

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इलाज, परहेज़ और ज़िंदगी भर की दवाएं डायबिटीज के मरीज़ों की ज़िंदगी इसी चक्र में घूमती रहती है। लेकिन तमिलनाडु के एक मंदिर में लोग सिर्फ दवा नहीं, भगवान शिव के विशेष रूप पर भरोसा लेकर पहुंचते हैं, जिन्हें “गन्ने के भगवान” कहा जाता है। यहां आकर श्रद्धालु मानते हैं कि उनकी शुगर धीरे-धीरे कम हो जाती है और कई मामलों में तो पूरी तरह से ठीक हो जाती है।

वेन्नी करुंबेश्वरर मंदिर: आस्था और चमत्कार का संगम

तिरुवरूर ज़िले के पास स्थित वेन्नी करुंबेश्वरर मंदिर को लोग आम मंदिरों की तरह नहीं, बल्कि ‘शुगर ठीक करने वाले मंदिर’ के रूप में जानते हैं। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा “करुंबेश्वरर” नाम से होती है, जिसका अर्थ है गन्ने के भगवान। यहां स्थापित शिवलिंग भी गन्ने की लकड़ी से बना हुआ है, जो इस मंदिर को और भी विशेष बनाता है।

डायबिटीज से जूझते लोगों के लिए उम्मीद की किरण

यहां हजारों की संख्या में डायबिटीज के मरीज़ आते हैं, भगवान के चरणों में चीनी चढ़ाते हैं और रोगमुक्ति की प्रार्थना करते हैं। सोशल मीडिया पर मशहूर इंफ्लुएंसर ‘द टेम्पल गर्ल’ और कई श्रद्धालुओं के मुताबिक, मंदिर में दर्शन के बाद शुगर लेवल में गिरावट देखी गई है। कुछ लोगों की दवाइयां कम हो गईं, तो कुछ की बीमारी में लंबे समय बाद राहत मिली।

चींटियों से जुड़ी मान्यता

मंदिर में भगवान को रवा और चीनी का विशेष भोग चढ़ाया जाता है। यह प्रसाद मंदिर के आसपास बिखेर दिया जाता है ताकि चींटियां उसे खा सकें। यहां मान्यता है कि जैसे-जैसे चींटियां चीनी खाती हैं, वैसे-वैसे भक्तों के शरीर में शुगर कम होती है। इन चींटियों को यहां “भगवान की चींटियां” कहा जाता है और इन्हें विशेष दर्जा दिया जाता है।

डॉक्टर और वैज्ञानिक भी हैरान

इस चमत्कार को जानने के बाद कई डॉक्टर और वैज्ञानिकों ने मंदिर में आने वाले लोगों की मेडिकल जांच की। कुछ मामलों में सचमुच शुगर लेवल में सुधार देखा गया। कुछ विशेषज्ञों ने इसे आस्था की शक्ति माना, तो कुछ ने इसे “माइंड-बॉडी कनेक्शन” का असर कहा। हालांकि, कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, पर आस्था की ताकत को नकारा भी नहीं जा सकता।

पौराणिक कथा

मंदिर के इतिहास से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार, एक बार मुगल आक्रमणकारी इस मंदिर को नष्ट करने आए थे, लेकिन तभी हजारों चींटियों ने आक्रमणकारियों को रोक दिया और मंदिर की रक्षा की। तभी से यहां की चींटियों को ईश्वरीय शक्ति से युक्त माना जाने लगा।

क्या यह सिर्फ विश्वास है या चमत्कार?

इस प्रश्न का उत्तर शायद विज्ञान के पास न हो, लेकिन उन हजारों श्रद्धालुओं के लिए ये मंदिर सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं, बल्कि उम्मीद, राहत और विश्वास का प्रतीक बन चुका है। जब इलाज थम जाए, तो आस्था ही आगे का रास्ता दिखाती है – और तमिलनाडु का यह मंदिर शायद उसी राह का एक अद्भुत पड़ाव है।