
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान दो बेहद रोचक घटनाक्रम सामने आए, जिन्होंने कोर्टरूम का माहौल पूरी तरह बदल दिया।
पहले दृश्य में, अदालत ने मुस्लिम पक्ष के वकील से सवाल किया।
जज: “मस्जिद के नीचे दीवारों के अवशेष मिले हैं।”
मुस्लिम पक्ष की वकील (मीनाक्षी अरोड़ा): “वो दीवारें दरगाह की भी हो सकती हैं।”
जज: “लेकिन आपका दावा तो यह है कि मस्जिद खाली ज़मीन पर बनाई गई थी, किसी ढाँचे को तोड़कर नहीं।”
वकील: (सन्नाटा)
जज: “एसआईटी की खुदाई में कुछ मूर्तियाँ भी मिली हैं।”
वकील: “वो बच्चों के खिलौने भी हो सकते हैं।”
जज: “उनमें वराह (सूअर) की मूर्ति भी मिली है, जो हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। क्या मुसलमानों में सूअर की मूर्ति से खेलने का चलन था?”
वकील: (घना सन्नाटा)
दूसरे दृश्य में, श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वादी के रूप में उपस्थित तुलसीपीठाधीश्वर, पद्मविभूषण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी ने अदालती कार्यवाही के दौरान शास्त्रों से प्रमाण पर प्रमाण प्रस्तुत किए। उन्होंने अदालत को बताया कि वेदों में श्रीराम का उल्लेख है और अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि का सटीक विवरण भी मिलता है। जब अदालत ने उनके दिए हुए प्रमाणों की जांच करवाई, तो वह बिल्कुल सही पाए गए।
जगद्गुरु जी के द्वारा वेदों से उद्धरण देते हुए बताया गया कि जिस स्थान पर श्रीराम जन्मभूमि का वर्णन किया गया है, वही विवादित स्थल है। इससे कोर्ट की कार्यवाही में निर्णायक मोड़ आ गया।
मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले न्यायाधीश ने भी उस समय टिप्पणी की—
जज: “आज मैंने भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार देखा। एक दृष्टिहीन व्यक्ति किस तरह वेदों और शास्त्रों का विशाल ज्ञान दे रहा है! यह कोई सामान्य शक्ति नहीं, बल्कि ईश्वरीय शक्ति का प्रमाण है।”
फिर एक सवाल उभरा—
जज: “आप वेदों से ही प्रमाण दे सकते हैं कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में इसी स्थान पर हुआ था?”
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी: “हाँ, दे सकता हूँ।”
इसके बाद उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता से सरयू नदी के संदर्भ में स्थान विशेष का उल्लेख किया और श्रीराम जन्मभूमि का प्रमाण प्रस्तुत किया। अदालत के आदेश पर जैमिनीय संहिता मंगाई गई और उसमें दिया गया विवरण पूरी तरह सही पाया गया।
इस ऐतिहासिक सुनवाई में शास्त्र और तर्क के माध्यम से श्रीराम जन्मभूमि का पक्ष बेहद मजबूत होकर उभरा।