
ऑपरेशन सिंदूर आधुनिक युद्ध का एक प्रभावशाली उदाहरण है; सटीक हमला क्षमता, नेटवर्क-केंद्रित ऑपरेशन, डिजिटल इंटेलिजेंस और मल्टी-डोमेन रणनीति को एक सीमित समय-सीमा के भीतर प्रभावी ढंग से उपयोग में लाया गया: सीडीएस
“युद्धभूमि में सफलता निर्धारित करने में प्रौद्योगिकीय श्रेष्ठता एक निर्णायक कारक बन गई है”
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने 11 नवंबर, 2025 को नई दिल्ली में दिल्ली डिफेंस डायलॉग में ‘आधुनिक युद्ध पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव’ पर अपने विशेष संबोधन में कहा” ऑपरेशन सिंदूर आधुनिक युद्ध का एक प्रभावशाली उदाहरण है, जहाँ सटीक हमला करने की क्षमता, नेटवर्क-केंद्रित ऑपरेशन, डिजिटल इंटेलिजेंस और मल्टी-डोमेन रणनीति को एक सीमित समय-सीमा के भीतर प्रभावी ढंग से उपयोग में लाया गया।” सीडीएस ने यह देखते हुए कि प्रौद्योगिकीय श्रेष्ठता युद्ध के मैदान पर सफलता का निर्धारण करने में एक निर्णायक कारक बन गई है, सैन्य नेतृत्व के लिए उभरती वास्तविकताओं के साथ तेजी से अनुकूलन करने की अनिवार्यता को रेखांकित किया।
जनरल अनिल चौहान ने इस बात पर बल दिया कि युद्ध मूलतः विजय प्राप्त करने के बारे में है, और जो प्रौद्योगिकी में अग्रणी हैं, अंततः उनकी ही जीत होगी। उभरती प्रौद्योगिकीयों, विकसित होते सिद्धांतों और बदलती भू-राजनीतिक गतिशीलता के गहन प्रभाव को रेखांकित करते हुए, उन्होंने बल देकर कहा कि आधुनिक युद्धकला को सशस्त्र बलों के भीतर त्वरित गति से हो रहे नवोन्मेषण, रणनीतिक साझेदारियों और संगठनात्मक परिवर्तन के ज़रिए नया रूप दिया जा रहा है।
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (एमपी-आईडीएसए) द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम का उद्घाटन रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने किया। कार्यक्रम का विषय था ‘रक्षा क्षमता विकास के लिए नए युग की प्रौद्योगिकी का उपयोग’।
अपने स्वागत भाषण में, एमपी-आईडीएसए के महानिदेशक राजदूत सुजान चिनॉय ने इस अवसर के विशेष महत्व पर प्रकाश डाला, जो संस्थान के 60 वें स्थापना दिवस के साथ अनुरूप है। उन्होंने आधुनिक रक्षा क्षमताओं को आकार देने में प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी भूमिका पर विचार किया और इस बात पर बल दिया कि विश्वभर के सशस्त्र बल औद्योगिक युग से सूचना और साइबर युग की ओर बढ़ रहे हैं।
एमपी-आईडीएसए के महानिदेशक ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और क्वांटम फिजिक्स जैसी उभरती हुई प्रौद्योगिकियां युद्ध और सुरक्षा में महत्वपूर्ण निर्धारक बन रही हैं। उन्होंने विदेशी प्रौद्योगिकी अधिग्रहण और स्वदेशी रक्षा निर्माण के बीच संतुलन बनाने के महत्व पर बल दिया और आत्मनिर्भरता नीति के तहत आत्मनिर्भर दृष्टिकोण की वकालत की।
यह संवाद नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं, उद्योग जगत के अग्रणी व्यक्तियों और शिक्षाविदों को एकजुट करता है ताकि वे इस बारे में अपनी अंतर्दृष्टि साझा कर सकें कि भारत की रक्षा क्षमता को बढ़ाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से कैसे उपयोग किया जा सकता है। उम्मीद है कि जारी चर्चाएं डेटा-संचालित रक्षा प्रणालियों के विकास और सुरक्षा में भविष्य की प्रौद्योगिकीय प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देंगी।













