कन्हैया चुनावी रण में उतरने को तैयार, बिहार की इस सीट से चुनाव लड़ना तय

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जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और देशद्रोह के आरोप में जेल जा चुके कन्हैया कुमार का 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की बेगूसराय सीट से चुनाव लड़ना लगभग तय है। वैसे तो वह अपनी मूल पार्टी सीपीआई के उम्मीदवार होंगे लेकिन संपूर्ण विपक्ष उन्हें समर्थन दे रहा होगा। बिहार में उनकी इस उम्मीदवारी को एक प्रतीक की शक्ल में देखा जा रहा है। बिहार का चुनावी गणित जातीय मकड़जाल में उलझा हुआ है। यही वजह है कि बीजेपी के लिए यह हमेशा मुश्किल रणक्षेत्र रहा है। 2015 के विधानसभा चुनाव में मोदी के करिश्माई नेतृत्व के बावजूद वह अच्छा नहीं कर पाई थी। कन्हैया की उम्मीदवारी से बीजेपी और उसके सहयोगी दल बिहार में अपने लिए उम्मीद देख रहे हैं। बीजेपी को लगता है कि कन्हैया के मैदान में उतरते ही चुनावी माहौल जातीय धुरी से हटकर राष्ट्रवाद की धुरी पर आ जाएगा, जिसके चलते विपक्ष को पटखनी देना आसान होगा।

बीजेपी के एक लीडर ने एक समाचार पत्र में दिए इंटरव्यू में माना भी कि वे लोग वोटर्स को यह जरूर याद दिलाएंगे कि यह वही कन्हैया कुमार हैं, जो भारत से कश्मीर की आजादी चाहते हैं और हर घर में अफजल गुरु के पैदा होने की उम्मीद रखते हैं। बेगूसराय में राष्ट्रवाद का तड़का लगाने की गरज से ही कन्हैया की उम्मीदवारी के खिलाफ बीजेपी की तरफ से राकेश सिन्हा को उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा हो रही है, जो कि संघ से जुड़े हैं और मोदी सरकार ने उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया है। वामदलों को वापसी की
उम्मीद यूं तो कुछेक राज्यों को छोड़कर वामदल पूरे देश की सियासत में हाशिए पर चले गए हैं लेकिन हिंदी बेल्ट में उनका और भी बुरा हाल है। कन्हैया के जरिए वामदल हिंदी बेल्ट खासकर बिहार में अपनी वापसी की उम्मीद पाले बैठे हैं। कन्हैया के राष्ट्रद्रोह के आरोप में जेल जाने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर जो पहचान मिली, उससे उनका भारतीय राजनीति के युवा तुर्क के रूप में महिमामंडन हुआ है। इसी के मद्देनजर सीपीआई और दूसरे वामदलों को वह तुरुप का इक्का नजर आते हैं।

जिस सीट से कन्हैया उम्मीदवार होंगे, वह एक समय वामदलों का गढ़ थी। दूसरी सबसे बड़ी बात यह कि खुद कन्हैया भूमिहार हैं, जिसका बिहार की पॉलिटिक्स में दबदबा है। वामदलों को लग रहा है कि कन्हैया के उम्मीदवार बनाए जाने से उनकी जीत-हार भूमिहारों की प्रतिष्ठा से जुड़ जाएगी। इस वजह से पूरे बिहार में भूमिहार गोलबंद होकर वामदलों के साथ आएंगे। गैर एनडीए के अन्य दल भी कन्हैया में संपूर्ण विपक्ष की एकजुटता देख रहे हैं।