उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा द्वारा पिछले सप्ताह यहां अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए दिए गए बयान को लेकर वकीलों के शीर्ष संगठनों के भीतर बुधवार को मतभेद पैदा हो गए। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष दुष्यंत दवे द्वारा हस्ताक्षरित एक बयान मीडिया में जारी किया गया। इसमें न्यायमूर्ति मिश्रा के बयान पर चिंता और पीड़ा जताते हुए पारित किये गए एक ‘प्रस्ताव’ का जिक्र है जिसमें उसके कई अन्य सदस्यों के भी हस्ताक्षर हैं। हालांकि, बाद में एसोसिएशन के महासचिव अशोक अरोड़ा ने दावा किया कि ऐसा कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया है क्योंकि मीडिया को जारी बयान पर उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किया है।
कुछ घंटे बाद बार काउन्सिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन में न्यायमूर्ति मिश्रा द्वारा शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा में दिये गए बयान की आलोचना किये जाने को ‘अदूरदर्शी सोच’ करार दिया। इस बीच, बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया (बीएआई) ने भी एक अलग बयान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा द्वारा प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा में इस्तेमाल किये गये शब्दों पर निराशा व्यक्त की है। एसोसिएशन ने कहा कि इस तरह का आचरण न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के बारे में लोगों की अवधारणा कमजोर करता है।
बीएआई पहला संगठन था जिसने इस मुद्दे पर आलोचनात्मक बयान जारी किया। इसके बाद एससीबीए ने बयान जारी किया, जिसका कुछ ही समय बाद अरोड़ा ने विरोध किया। एसोसिएशन ने एक बयान में कहा कि न्यायाधीशों का यह बुनियादी कर्तव्य है कि वे सरकार की कार्यपालिका शाखा से गरिमामय दूरी बनाकर रखें। बार एसोसिएशन आफ इंडिया के अध्यक्ष ललित भसीन ने एक बयान में कहा कि इस तरह का व्यवहार जनता के विश्वास को कम करता है। भसीन ने कहा, ‘‘बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया की कार्य समिति का मत है कि अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन में धन्यवाद प्रस्ताव पेश करते समय न्यायमूर्ति मिश्रा ने प्रधानमंत्री की प्रशंसा में जो अतिरेकपूर्ण शब्द इस्तेमाल किये वे औपचारिक शिष्टाचार के नियमों से बाहर थे।’
एससीबीए द्वारा की गई न्यायमूर्ति मिश्रा की आलोचना बीसीआई को रास नहीं आई। बीसीआई अध्यक्ष ने एक बयान में कहा, ‘दुष्यंत दवे (एससीबीए अध्यक्ष) ने न्यायमूर्ति मिश्रा के बारे में एक लेख प्रकाशित करके उन्हें हाल में उच्चतम न्यायालय में आयोजित अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन, 2020 में दिये गए भाषण के लिये उन्हें अनुचित विवाद में घसीटने की कोशिश की।’’ न्यायमूर्ति मिश्रा की आलोचना को ‘अदूरदर्शी सोच’ वाला कृत्य करार देते हुए उन्होंने कहा कि ‘मिश्रा का भाषण मेजबान की हैसियत से था और उन्होंने सभी मेहमानों के लिये अच्छे शब्दों का इस्तेमाल किया। उस समय वह अदालत लगाए हुए नहीं थे।’’ उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने मीडिया में भेजे गये एक बयान में कहा कि शनिवार को इस सम्मेलन में मोदी के बारे में न्यायमूर्ति मिश्रा के बयान का उसने बहुत ही पीड़ा और चिंता के साथ संज्ञान लिया है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे और इसके दूसरे सदस्यों के हस्ताक्षर वाले बयान में कहा गया है, ‘‘एससीबीए उपरोक्त बयान पर अपनी कड़ी असहमति व्यक्त करती है और इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना करती है। एससीबीए का मानना है कि संविधान के अंतर्गत न्यायपालिका का स्वतंत्रता बुनियादी ढांचा है और इस स्वतंत्रता को अक्षरश: संरक्षित करना होगा।’’ हालांकि, अरोड़ा ने कहा कि दवे जो कह रहे हैं उसे प्रस्ताव नहीं माना जा सकता है क्योंकि मीडिया को जारी बयान में उन्होंने महासचिव के तौर पर हस्ताक्षर नहीं किया है। उन्होंने कहा, ‘‘एसोसिएशन की कार्यकारी परिषद या आम सभा की कोई बैठक नहीं हुई। अध्यक्ष ने मनमाना तानाशाही भरा और गैर जिम्मेदाराना रुख जारी किया है। वह इस तरह के गंभीर मुद्दे पर आम सभा या कार्यकारी परिषद की बैठक बुलाए बिना एससीबीए की तरफ से नहीं बोल सकते।’’
अरोड़ा ने पीटीआई से कहा कि मीडिया को सभी बयान मुख्य कार्यकारी अधिकारी के जरिये भेजे जाते हैं, जो एससीबीए का महासचिव है। उन्होंने कहा, ‘यह कानून की नजर में प्रस्ताव नहीं है क्योंकि इसपर मैंने हस्ताक्षर नहीं किया है।’’ उन्होंने कहा कि दवे ने मीडिया को एक परिपत्र उपलब्ध कराया जिसमें सिर्फ छह से सात सदस्यों के सुझाव हैं। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति मिश्रा ने 22 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी और उन्हें अंतराष्ट्रीय स्तर का स्वप्नदर्शी बताया था। उन्होंने मोदी को बहुमुखी प्रतिभा वाला बताया था जो वैश्विक स्तर का सोचते हैं और स्थानीय स्तर पर काम करते हैं।