
वर्तमान में ईरान और इजरायल के बीच जारी युद्ध में हाइपरसोनिक मिसाइलों का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है। इस संघर्ष ने वैश्विक सुरक्षा समीकरणों को नया मोड़ दिया है और अब भारत भी अपनी सैन्य क्षमताओं को और मजबूत करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। हाल ही में हुए “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान भारतीय हथियार प्रणालियों ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली, ड्रोन और हवाई क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाया। इस ऑपरेशन ने भारत की तकनीकी क्षमता और सैन्य तैयारी को फिर एक बार साबित कर दिया है।
जल्द ही भारत के पास भी होंगे हाइपरसोनिक हथियार
इस बीच, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के प्रमुख समीर वी. कामत ने जानकारी दी है कि भारत भी हाइपरसोनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी में तेजी से प्रगति कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत इस क्षेत्र में पीछे नहीं है और जल्द ही भारत के पास भी हाइपरसोनिक ग्लाइड मिसाइलों का बेड़ा होगा।
उन्होंने बताया कि पिछले साल भारत ने ओडिशा के तट से दूर एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया था। यह मिसाइल परीक्षण भारत की रक्षा शक्ति को नए स्तर पर ले जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
तीन वर्षों में मिसाइल प्रणाली शामिल होने की उम्मीद
डीआरडीओ प्रमुख के अनुसार, हाइपरसोनिक ग्लाइड मिसाइल प्रणाली अब अपने उन्नत विकास चरण में पहुंच चुकी है। एक सफल विकास परीक्षण पहले ही किया जा चुका है और आने वाले 2-3 वर्षों में सभी आवश्यक परीक्षण पूरे कर लिए जाएंगे। इसके बाद इस प्रणाली को भारतीय सेना में शामिल किया जाएगा।
क्यों खास होती हैं हाइपरसोनिक मिसाइलें?
हाइपरसोनिक मिसाइलें ध्वनि की गति से पांच गुना अधिक गति से चलती हैं। इन्हें रोक पाना मौजूदा वायु रक्षा प्रणालियों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। इनकी रफ्तार, सटीकता और विनाशक क्षमता इन्हें भविष्य के युद्धों में गेम चेंजर बनाती है।
ईरान-इजरायल युद्ध में हाइपरसोनिक मिसाइलों के प्रभाव को देखते हुए भारत का यह निर्णय सामरिक दृष्टिकोण से बेहद अहम है। ऑपरेशन सिंदूर ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत न केवल रक्षा में आत्मनिर्भर बन रहा है, बल्कि अगली पीढ़ी की मिसाइल टेक्नोलॉजी में भी अपना परचम लहराने को तैयार है।