
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश अभय एस. ओका ने अपने विदाई भाषण में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत के उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट्स), सुप्रीम कोर्ट की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक तरीके से काम करते हैं।
न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के बीच मुक्त संवाद, स्पष्ट असहमति और तर्कपूर्ण चर्चाएं होती हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया अधिक समावेशी बनती है। जबकि सुप्रीम कोर्ट में कामकाज की प्रकृति थोड़ी अधिक केंद्रीकृत और अनुशासित होती है।
लोकतांत्रिक न्याय प्रणाली पर ज़ोर:
उन्होंने कहा,“हाईकोर्ट में न्यायिक स्वतंत्रता और संवाद की जो संस्कृति है, वह लोकतंत्र की आत्मा को दर्शाती है। सुप्रीम कोर्ट में भी यह होना चाहिए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बने।”
न्यायमूर्ति ओका का न्यायिक योगदान:
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया था और सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण व नागरिक अधिकारों से जुड़े मामलों में उनके फैसले खासे चर्चित रहे हैं।
उनकी यह टिप्पणी भारतीय न्याय व्यवस्था में लोकतांत्रिक मूल्यों और न्यायिक स्वतंत्रता पर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म देती है।