
एक बार फिर पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी की जेब पर सीधा असर डाला है। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें कई बार 1 लीटर कोल्ड ड्रिंक से भी सस्ती हो जाती हैं, तब भी भारत में पेट्रोल की कीमत ₹100 प्रति लीटर से ऊपर बनी रहती है। आखिर इसकी असली वजह क्या है?
कच्चा तेल कितना सस्ता है?
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल (Crude Oil) की कीमत अप्रैल 2025 में करीब $80 प्रति बैरल के आसपास है। एक बैरल में लगभग 159 लीटर तेल होता है, यानी एक लीटर कच्चा तेल लगभग ₹42-₹45 में मिल रहा है। यानी तकनीकी रूप से देखें तो यह किसी ब्रांडेड कोल्ड ड्रिंक की एक लीटर बोतल से सस्ता है।
तो फिर पेट्रोल इतना महंगा क्यों?
इसका मुख्य कारण है — टैक्स स्ट्रक्चर।
भारत में पेट्रोल और डीजल पर केंद्र और राज्य सरकारें भारी टैक्स वसूलती हैं। इसका पूरा ब्रेकअप कुछ यूं है:
कच्चे तेल की लागत: ₹42-₹45 प्रति लीटर
रिफाइनिंग, ट्रांसपोर्ट, डीलर मार्जिन: ₹10-₹15
केंद्र सरकार का एक्साइज ड्यूटी: ₹20–₹25
राज्य सरकार का वैट (VAT): ₹15–₹30 (राज्य अनुसार अलग-अलग)
अंतिम खुदरा कीमत (पेट्रोल): ₹95–₹115 प्रति लीटर
भारत में टैक्स का अनुपात सबसे ज़्यादा
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत उन देशों में शामिल है जहाँ फ्यूल पर टैक्स का अनुपात सबसे ज़्यादा है। कई बार कुल कीमत का 50% से भी ज़्यादा हिस्सा सिर्फ टैक्स होता है।
सरकार का क्या तर्क है?
सरकार का कहना है कि तेल से वसूले गए टैक्स का उपयोग इंफ्रास्ट्रक्चर, किसानों की सहायता, और सामाजिक योजनाओं के लिए किया जाता है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि फ्यूल टैक्सेशन “रेग्रेसिव” है, क्योंकि इसका असर गरीब और मध्यम वर्ग पर ज़्यादा होता है।
क्या कोई समाधान है?
पेट्रोल-डीजल को GST के दायरे में लाने की बात अक्सर होती है, जिससे टैक्स एक समान और पारदर्शी हो सके। वैकल्पिक ईंधनों और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना भी एक दीर्घकालिक समाधान माना जा रहा है।
जब तक भारत में टैक्स स्ट्रक्चर में बदलाव नहीं होता या फ्यूल को GST में शामिल नहीं किया जाता, तब तक पेट्रोल-डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की तुलना में आम उपभोक्ता के लिए महंगी ही रहेंगी।