कोविड-19 के लिए परीक्षण किट विकसित कर रहा है सीसीएमबी

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कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) समय रहते परीक्षण पर जोर दे रहा है, क्योंकि प्रारंभिक निदान जीवन को बचाने में मदद कर सकता है। डब्ल्यूएचओ के आह्वान के साथ कोशकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) व्यापक वितरण के लिए किफायती और सटीक नैदानिक किट के विकास पर लगातार काम कर रहा है। सीसीएमबी के निदेशक डॉ. राकेश मिश्रा अपनी इनक्यूबेटिंग कंपनियों की मदद कर रहे है, जो परीक्षण किट विकसित करने का विचार लेकर आए हैं । प्रस्तावित नैदानिक किट का परीक्षण और सत्यापन जारी  है । अगर सब कुछ ठीक रहा तो यह नैदानिक किट 2-3 सप्ताह में विकसित हो सकती है।

परीक्षण किट के मामले में उसकी गुणवत्ता और सटीक नतीजे सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। यदि किट 100 प्रतिशत परिणाम देती हैं, तो उन्हें मंजूरी दी जाएगी। संस्थान इस परीक्षण किट की लागत को भी ध्यान में रख रहा है। डॉ मिश्रा के अनुसार हमारा अनुमान है कि इस किट की मदद से परीक्षण 1000 रुपये से कम में हो सकता है। हम उन किटों के बारे में भी सोच रहे हैं जो 400-500 रुपये में उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन  वर्तमान में हम यह आश्वासन नहीं दे सकते हैं, क्योंकि ऐसी किट विकसित करने का तरीका अलग है, जिसके लिए अधिक मानकीकरण की जरूरत है। इसके अलावा सीसीएमबी कोविड-19 वायरस को कल्चर करने की योजना बना रहा है। डॉ. मिश्रा ने कहा कि संस्थान के पास इसके लिए सुविधाएं हैं और उन्हें सरकार से भी मंजूरी मिली हुई है,

उन्हें अभी तक कल्चर शुरू करने के लिए नमूना और किट प्राप्त नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा कि इस बीच, हमारे सुविधा केंद्र तैयार हैं और हम ऐसे लोगों को प्रशिक्षित कर रहे हैं, जो अन्य मान्यता प्राप्त संस्थानों में परीक्षण के लिए जा रहे हैं। तेलंगाना में 5 सरकारी परीक्षण केंद्र हैं। सीसीएमबी ने अभी तक 25 लोगों को इसके लिए प्रशिक्षित किया है, ताकि वे इन केंद्रों में जाकर परीक्षण कर सकें। कुछ प्रयोगशालाएं जहां कोविड-19 परीक्षण किया जाएगा, इनमें निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, गाँधी अस्पताल, उस्मानिया जनरल अस्पताल, सर रोनाल्ड रॉस इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल ऐंड कम्युनिकेबल डिजीज या फीवर हॉस्पिटल और वारंगल हॉस्पिटल शामिल हैं। सेंटर फॉर डीएनए फिंगर प्रिंटिंग ऐंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी) को भी इस समूह में जोड़ा जा सकता है।

वैक्सीन और दवा का विकास वायरस से लड़ने का एक अन्य पहलू हो सकता है। लेकिन अभी तक सीसीएमबी न तो वैक्सीन और न ही दवा के विकास पर काम कर रहा है। डॉ मिश्रा ने कहा कि हमारे पास इस पर काम करने के लिए विशेषज्ञता नहीं है। हालांकि  जब वायरस कल्चर किया जा रहा है, तो हम एक पद्धति विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि इसका उपयोग परीक्षण के लिए किया जा सके।उन्होंने उम्मीद व्यक्त करते हुए कहा है कि यह संभव है कि सीसीएमबी की आनुषांगिक संस्था इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी (आईआईसीटी) दवाओं के पुनर्निधारण के लिए काम कर रही हो क्योंकि नयी दवा बनाना एक लंबी अवधि की प्रक्रिया है।

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भरत पांडेय