
जहाँ दुनिया वैभव और सत्ता की ऊँचाइयों में खो जाती है,वहीं एक पुत्र अपने ईश्वर के चरणों में नतमस्तक होकर धूल भरे पथ पर निकल पड़ता है, यह कोई साधारण यात्रा नहीं, यह अनंत अंबानी की द्वारकाधीश पदयात्रा है। ये यात्रा सिर्फ पैरों की थकान नहीं, ये आत्मा की पुकार है।जहाँ हर कदम भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में भीगा हुआ है। बिना किसी दिखावे के, बिना किसी सुविधा के एक विशाल हृदय, समर्पण से पूर्ण,अपने अराध्य के द्वार तक पहुँचने को तत्पर। जब अनंत जैसे व्यक्तित्व संपूर्ण श्रद्धा के साथ पदयात्रा करें,तो यह संदेश देता है —कि चाहे जीवन में कितना भी वैभव हो,अंत में सच्चा सुख प्रभु के चरणों में ही है।
द्वारका, गुजरात: देश के प्रमुख उद्योगपतियों में से एक, अनंत अंबानी ने हाल ही में भगवान श्री द्वारकाधीश के मंदिर में पहुंचकर गहन भक्ति और श्रद्धा का परिचय दिया। उनकी यह आध्यात्मिक यात्रा महज एक दर्शन नहीं,बल्कि श्रद्धा की उस अनंत धारा का प्रतीक बन गई है, जो उन्होंने प्रभु के चरणों में समर्पित की। अनंत अंबानी ने द्वारका नगरी में स्थित श्री द्वारकाधीश मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की और मंदिर के प्राचीन इतिहास एवं सांस्कृतिक महत्व पर गहरा सम्मान प्रकट किया। मंदिर प्रशासन के अनुसार, अनंत अंबानी ने न केवल भक्ति भाव से दर्शन किए, बल्कि मंदिर की सेवा और संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने की भी बात कही।
इस अवसर पर मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे, जिन्होंने अनंत अंबानी की भक्ति को देखा और सराहा। उन्होंने कहा, “यह केवल एक उद्योगपति की यात्रा नहीं थी, यह आस्था और विनम्रता की मिसाल थी।” अनंत अंबानी की यह यात्रा सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बनी हुई है। कई यूज़र्स ने इसे “आध्यात्मिक प्रेरणा” बताया है और कहा कि भक्ति और धन का संगम जब सच्चे मन से हो, तो वह समाज को एक नई दिशा देता है।
द्वारकाधीश के प्रति उनका यह समर्पण,”अनंत श्रद्धा की यात्रा, द्वारकाधीश के चरणों में अनंत अर्पण” बनकर भक्ति की एक नई मिसाल बन गया है। हे द्वारकाधीश! तुम्हारे दर पर आने के लिए कोई राजा नहीं,बस तुम्हारा एक भक्त ही होना चाहिए। “अनंत भक्ति, अनंत समर्पण, द्वारकाधीश की ओर एक भक्त की पदयात्रा”
जब मन में भक्ति हो और हृदय में श्रीकृष्ण का नाम, तब राह की कठिनाइयाँ भी प्रसाद बन जाती हैं।
ये कोई साधारण यात्रा नहीं, ये है अनंत अंबानी द्वारा भगवान द्वारकाधीश के चरणों में समर्पण का भाव। संपत्ति और वैभव के शिखर पर होने के बाद भी,जब कोई अपने ईश्वर के द्वार तक पैदल चलकर पहुँचने का संकल्प ले, तो वह एक जीवंत उदाहरण बन जाता है, कि आस्था किसी हैसियत की मोहताज नहीं होती। धूप हो या धूल,पथरीली ज़मीन हो या थकान ,हर पड़ाव पर अनंत की आंखों में बस एक ही झलक थी,अपने श्याम सुंदर की द्वारका नगरी।