पुरी में भक्ति, संस्कृति और उल्लास का पर्व, भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का शुभारंभ

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विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का शुभारंभ आज भव्यता और भक्तिभाव के साथ हुआ। पुरी में हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में भगवान जगन्नाथ, उनके भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा को विशाल रथों पर सवार कर ‘गुंडिचा मंदिर’ (मौसी का घर) की ओर ले जाया जा रहा है। यह 12 दिवसीय रथ यात्रा 8 जुलाई को ‘नीलाद्रि विजय’ के साथ संपन्न होगी, जब भगवान पुनः अपने मूल स्थान श्रीमंदिर में लौटेंगे।

भक्ति और परंपरा का संगम

रथ यात्रा से पूर्व ‘स्नान पूर्णिमा’ पर पारंपरिक तौर पर भगवान बीमार पड़ते हैं और फिर ‘नबजौबन दर्शन’ के पश्चात यात्रा के लिए सज्जित होते हैं। मान्यता है कि रथ यात्रा के दिन भगवान स्वयं भक्तों के बीच आकर दर्शन देते हैं, जिससे यह दिन अति पुण्यकारी माना जाता है।

देश और दुनिया से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचे हैं। अमेरिका में रहने वाली इक्वाडोर मूल की एक महिला श्रद्धालु ने कहा, “भगवान जगन्नाथ के दर्शन करना मेरे जीवन का सपना था, जो आज पूरा हुआ है। यह अनुभव अविस्मरणीय है।”

राजनेताओं की शुभकामनाएं

पुरी के सांसद डॉ. संबित पात्रा ने रथ यात्रा को अनादिकाल से चली आ रही परंपरा और भगवान के ब्रह्मांडीय संचालन का प्रतीक बताया। वहीं केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस उत्सव को सामाजिक समावेश, भाईचारे और सनातन संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति बताया। उन्होंने कामना की कि महाप्रभु का आशीर्वाद देश-दुनिया में शांति और प्रगति लाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर देशवासियों को शुभकामनाएं दीं, उन्होंने लिखा भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पावन अवसर पर सभी देशवासियों को मेरी ढेरों शुभकामनाएं। श्रद्धा और भक्ति का यह उत्सव जीवन में सुख, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य लेकर आए। जय जगन्नाथ!

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी अपने संदेश में कहा कि, रथ यात्रा के दौरान भगवान बलभद्र, महाप्रभु जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और चक्रराज सुदर्शन के दर्शन से भक्त दिव्य अनुभूति प्राप्त करते हैं। यह उत्सव विश्व में शांति, प्रेम और सौहार्द का संदेश देता है।

रथ यात्रा के दौरान पुरी में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं और कई सांस्कृतिक कार्यक्रम, विशेष अनुष्ठान और धार्मिक विधियां आयोजित की जा रही हैं। महीनों पहले से इसकी तैयारियां चल रही थीं, जो अब भक्ति और संस्कृति के चरम रूप में साकार हो रही हैं।

यह उत्सव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, एकता और भक्ति की भावनाओं का जीवंत प्रतीक है।