पितृदोष से मिलेगी मुक्ति, पितृ पक्ष में करना ना भूले ये उपाय

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श्राद्ध का फल

शास्त्रकारों ने कहा है कि जो व्यक्ति (श्रद्धाहीन होकर) अपने पितृजनों के निमित्त श्राद्ध कर्म नहीं करता उसके परिवार में वीरों का जन्म नहीं होता और न ही उसके परिवार में कोई निरोग एंव स्वस्थ बना रहता है, जहाँ तक कि उस परिवार के किसी सदस्य को दीर्घायु भी प्राप्त नही हो पाती और न ही उस परिवार से किसी का कल्याण होता है। शास्त्रमत् में गोत्र एंव स्वनाम उच्चारण के साथ श्राद्ध कर्म के रूप में पित्तरों के निमित्त दिया गया अन्न, जल आदि भोजन सामग्री पित्तरों के ग्रहण योग्य बन जाती है और ‘हव्य’ बनकर निश्चित ही पित्तरों के पास पहुंचता है।
उपरोक्त शास्त्र वचन् पद्यपुराण में निम्नवत् सिद्ध किया गया हैः-

‘अग्रिष्वात्तादयस्तेषामाधिपत्ये व्यवकस्थ्ताः।’

अगर मृत्यु पश्चात् सम्पन्न किये जाने वाले अन्त्येष्टि कर्मों द्वारा मृतक किसी देवयोनि को प्राप्त कर चुके है, तो भी श्राद्ध, तर्पण जैसे कर्मों द्वारा श्रद्धा सहित अर्पित किए अन्नादि पदार्थ मृतक पित्तरजनों तक अमृत रूप में निश्चित ही पहुंच जाते है। इस प्रकार मनुष्य योनि को प्राप्त हुए पित्तर श्राद्ध द्वारा प्रदान किए गये पदार्थों को अन्न रूप में, पशु योनि को प्राप्त हुए पित्तर तृण रूप में, नाग आदि नीच योनियों को प्राप्त हुए पित्तर उन्हें वायु रूप में, यक्ष आदि योनि को प्राप्त हुए पित्तर उन्हें पान रूप में, पशु एंव अन्य निम्नतम् योनियों में गये पित्तर श्राद्ध के अन्नादि को अपने अनुरूप भोग अथवा तृप्तिकर पदार्थों के रूप में प्राप्त कर लेते है। संतानजनों द्वारा श्राद्ध कर्म के रूप में प्रदान किए गये भोज्य पदार्थों को ग्रहण करके हमारे पित्तर अति संतुष्ट, तृप्त एंव प्रसन्नता का अनुभव करते है और अपनी संतानों को प्रसन्नतापूर्वक अर्शीवाद प्रदान करते है।

श्राद्ध कब न करें ?

पूर्वजों की मृत्यु के प्रथम वर्ष में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। पूर्वान्ह में, शुक्ल पक्ष के दौरान, रात्रि के समय और अपने जन्म दिन के असवर पर श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए।

इसी प्रकार चतुर्दशी तिथि को भी श्राद्ध नही करना चाहिए। इस तिथि को मृत्यु को प्राप्त हुए पित्तरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या तिथि को सम्पन्न करने का शास्त्रीय विधान है। कूर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि, विष आदि के द्वारा आत्महत्या करके अपनी जान देता है, उसके निमित्त श्राद्ध, तर्पण आदि करने का विधान नही है।

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