किसान आंदोलन में गुरुद्वारों, सिखों, जाट और अन्य समुदायों की मौजूदगी के बावजूद बेटियों के उत्पीड़न पर अंदरुनी तौर पर सख्त कार्यवाही का दिखाई ना देना कहीं ना कहीं सभी पर सवालिया निशान उठाता है ?
किसान आंदोलन में शुरुआत से ही पंजाब के गुरुद्वारों के सेवादारों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है। चाहे बात राशन-पानी के इंतजाम की हो, टेंटों की या फिर रोजमर्रा के लिए इस्तेमाल होने वाले सामान की। गुरुद्वारों की ही ताकत है जिसकी वजह से किसान आंदोलन छह महीनों से दिल्ली के चारों ओर सिर उठाकर खड़ा है। आंदोलनस्थलों पर तो अलग-अलग गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों के अनुयायियों की ओर से अस्थाई गुरुद्वारे भी बनाए गए हैं। शुरुआत में ये माहौल देखकर हर किसी को अच्छा लगा। लेकिन हाल ही में बेटियों से बदसुलूकी जो घटनाएं सामने आई हैं, उनसे किसान आंदोलन से जुड़े, सभी लोगों की नीयत और निती दोनों पर सवालिया निशान लग गया है।
पहली बार, जब टिकरी बॉर्डर पर, किसान आंदोलन में कोरोना से एक बंगाल की युवती की मौत की बात सामने आई तो सभी परेशान थे कि कहीं किसान आंदोलन में कोरोना ने तो पैर नहीं पसार लिए हैं, लेकिन बाद में जब लड़की के पिता ने खुलासा किया कि बेटी की मौत से पहले उसका किसान आंदोलन में गैंगरेप किया गया था , तो पूरा देश सन्न रह गया। हैरानी तब और भी हुई जब पता चला कि किसान आंदोलन के बड़े नेताओं को इस दुष्कर्म के बारे में पता था।
सरदार गुरनाम सिंह चढ़ूनी जैसे कुछ नेताओं ने तो लड़की और उसके पिता को ही देर से एफआईआऱ करने के लिए दोषी करार दे दिया, जबकि दूसरे सिक्ख , यादव और जाट नेता भी इस मामले में यही दलील देते दिखे कि लड़की ऐसा नहीं चाहती थी क्योंकि ऐसे खुलासों से आंदोलन बदनाम हो सकता था।
बेहद शर्मनाक बात ये भी रही कि जब पुलिस आंदोलनस्थल पर पहुंची तो पता चला कि आंदोलन के नेताओं के आदेश पर पहले ही घटनास्थल को तोड़ा-फोड़ा जा चुका था।
बंगाल की युवती के अलावा भी कुछ और युवतियां किसानों की सेवा की इच्छा से आईं, ऐसी ही एक युवती जिसका ट्वीटर हेंडल था @KaurForFarmers भी अमेरिकी हार्ट सर्जन डाक्टर सवाई मान सिंह के कैंप में पहुंची। उस लड़की ने भी आरोप लगाया कि आंदोलनस्थल पर उससे छेड़छाड़ हुई, यौन उत्पीड़न हुआ और इसकी शिकायत उस लड़की ने अपने पिता समान सिख डाक्टर सवाई मान सिंह से भी की, लेकिन यहीं पर सिखों के न्यायप्रिय होने का इतिहास भी शर्मसार हो गया। लड़की ने सोशल मीडिया पर अपनी चिट्ठी डालकर आरोप लगाया कि डाक्टर सवाई मान सिंह, जो कि अमेरिका के 5 रीवर हार्ट एसोसिएशन से हैं और यहां आकर किसानों की सेवा कर रहे हैं, उन्होंने उसके साथ हुए यौन उत्पीड़न के आरोपियों को कुछ नहीं कहा, ये बात आंदोलन के बड़े किसान नेताओं तक भी पहुंची, लेकिन उन्होंने भी चुप्पी साध ली। आखिरकार लड़की को टिकरी बॉर्डर से बाहर निकलना पड़ा और सिंघू बॉर्डर होते हुए वो पंजाब वापस लौट गई।
एक अखबार ने दावा किया कि उन्होंने डाक्टर सवाई मान सिंह से बातचीत की तो उन्होंने बदसलूकी की बात मानते हुए बताया कि उन्होंने इस घटना की जानकारी किसान आंदोलन के नेताओं को दे दी थी।
ये घटनाएं सिर्फ किसान आंदोलन से जुड़े कुछ राजनीतिक नेताओं पर सवालिया निशान नहीं लगातीं, बल्कि उन्हें समर्थन करने वाले गुरुद्वारों, संगतों और समाजसेवी संस्थाओं पर भी बेटियों से हो रहे दुराचार के प्रति मूकरद्शन बनने के आरोप लगा सकती हैं।
पहली लड़की जिससे गैंगरेप हुआ और फिर मृत्यु हो गई, वो बंगाल से थी और दूसरी शिकायतकर्ता पंजाब से आई हुई सिख युवती थी, जिसने बाद में घर की सुरक्षा में पहुंचकर ही मुंह खोला, वो भी सिर्फ सोशल मीडिया पर।
ये दो मामले तो उजागर हो गए हैं, लेकिन जिस प्रकार से किसान आंदोलन में दुषकर्मों की बातों को दबाए जाने के आरोप लगे हैं, उससे साफ है कि कुछ और मामले भी आने वाले समय में निकल सकते हैं।
ऐसे में जनता की निगाहें उन गुरुद्वारों के सेवादारों की ओर भी हैं, जिनके समर्थन से आंदोलन का राशन-पानी चल रहा है। हो सकता है कि इन गुरुद्वारों के सेवादारों से, जाट नेताओं से, किसान नेताओं से आने वाले समय में उनके ही भक्तों के बच्चे किसी दिन सवाल पूछ लें कि बाबाजी बताईये जब टिकरी बॉर्डर पर आप या आपके साथी थे, और बेटियों से दुष्कर्मों की घटनाएं हुईं, तो आपने कुछ क्यों नहीं किया ?
किसान आंदोलन के दौरान लाल किले पर तिरंगे के अपमान से लेकर बेटियों के बलात्कार और यौन शोषण जैसी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जो कि आने वाले समय में आंदोलन की कमान थामे सिख और जाट समुदाय के नेताओं के मौन रहने वाले रवैये पर ही नहीं, बल्कि सिख और जाट समुदाय के गौरवशाली इतिहास पर भी काला धब्बा बन सकती हैं। सवाल इसलिए भी उठ सकते हैं क्योंकि इन आंदोलनस्थलों पर धर्म के रक्षक के प्रतीक माने जाने वाले निहंग सिख का डेरा भी शुरुआत से ही मौजूद है।
इसलिए अब गुरुद्वारों, समाजसेवियों और आंदोलन के नेताओं से जुड़े हर व्यक्ति को सोचने की जरुरत है कि बेटियों के सम्मान के लिए जीरो टोलरेंस रखने वाला धार्मिक समाज, अब भी इस आंदोलन के साथ क्यों जुड़ा है। ये भी सोचना होगा कि अगर भविष्य में ऐसी और घटनाएं सामने आईं, तो ये चुप्पी उनके ही नहीं, बल्कि धार्मिक इतिहास पर भी काला धब्बा तो नहीं बन जाएंगी ?