
वेद, पुराण आदि धर्मशास्त्रों में प्राचीनकाल की कई मानव जातियों का उल्लेख मिलता है- देवता, असुर, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग आदि। देवताओं की उत्पत्ति अदिति से, असुरों की दिति से, दानवों की दनु, कद्रू से नाग की मानी गई है
ये तीनों ही कश्यप ऋषि की पत्नियां थीं। जहां तक राक्षस जाति का सवाल है तो प्रारंभिक काल में यक्ष और रक्ष ये दो ही तरह की मानव जातियां थीं। राक्षस लोग पहले रक्षा करने के लिए नियुक्त हुए थे, लेकिन बाद में इनकी प्रवृत्तियां बदलने के कारण ये अपने कर्मों के कारण बदनाम होते गए और आज के संदर्भ में इन्हें असुरों और दानवों जैसा ही माना जाता है।
पुराणों अनुसार कश्यप की सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए, लेकिन एक कथा अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा ने समुद्रगत जल और प्राणियों की रक्षा के लिए अनेक प्रकार के प्राणियों को उत्पन्न किया। उनमें से कुछ प्राणियों ने रक्षा की जिम्मेदारी संभाली तो वे राक्षस कहलाए। और जिन्होंने यक्षण (पूजन) करना स्वीकार किया वे यक्ष कहलाए। जल की रक्षा करने के महत्वपूर्ण कार्य को संभालने के लिए ये जाति पवित्र मानी जाती थी।जल की रक्षा करने के महत्वपूर्ण कार्य को संभालने के लिए ये जाति पवित्र मानी जाती थी।
राक्षसों का प्रतिनिधित्व दोनों लोगों को सौंपा गया- ‘हेति’ और ‘प्रहेति’। ये दोनों भाई थे। ये दोनों भी दैत्यों के प्रतिनिधि मधु और कैटभ के समान ही बलशाली और पराक्रमी थे। प्रहेति धर्मात्मा था तो हेति को राजपाट और राजनीति में ज्यादा रुचि थी। परमपिता ब्रह्मा जब सृष्टि की रचना कर रहे थे तो उस श्रम के कारण उन्हें बड़ा क्रोध आया और बहुत भूख लगी। उनके क्रोध से हेति और भूख से प्रहेति नामक राक्षसों ने जन्म लिया। यहीं से राक्षस कुल की शुरुआत हुई।
प्रहेति ब्रह्मदेव की प्रेरणा से तपस्या में लीन हो गया। हेति ने यमराज की बहन भया से विवाह किया। हेति और भया का पुत्र विद्युत्केश हुआ जिसका विवाह संध्या की पुत्री सालकण्टका से हुआ। माना जाता है कि ‘सालकण्टका’ व्यभिचारिणी थी। इस कारण जब उसका पुत्र जन्मा तो उसे लावारिस छोड़ दिया गया। विद्युत्केश ने भी उस पुत्र की यह जानकर कोई परवाह नहीं की कि यह न मालूम किसका पुत्र है। बस यहीं से राक्षस जाति में बदलाव आया…।
पुराणों अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती की उस अनाथ बालक पर नजर पड़ी और उन्होंने उसको सुरक्षा प्रदान की। उस अबोध बालक को त्याग देने के कारण मां पार्वती ने शाप दिया कि अब से राक्षस जाति की स्त्रियां जल्द गर्भ धारण करेंगी और उनसे उत्पन्न बालक तत्काल बढ़कर माता के समान अवस्था धारण करेगा। इस शाप से राक्षसों में शारीरिक आकर्षण कम, विकरालता ज्यादा रही।
शिव और पार्वती ने उस बालक का नाम ‘सुकेश’ रखा। शिव के वरदान के कारण वह निर्भीक था। वह निर्भीक होकर कहीं भी विचरण कर सकता था। शिव ने उसे एक विमान भी दिया था। विद्युत्केश का पुत्र सुकेश हुआ जिसे दोनों ने त्याग दिया। तब भगवान शिव और माता पार्वती ने उसे गोद ले लिया और वो शिव-पुत्र कहलाया। उसका विवाह ग्रामणी नामक गन्धर्व की कन्या देववती से हुआ।
देववती से सुकेश के तीन पुत्र हुए- 1.माल्यवान, 2. सुमाली और 3. माली। इन तीनों के कारण राक्षस जाति को विस्तार और प्रसिद्धि प्राप्त हुई। इन तीनों भाइयों ने शक्ति और ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। ब्रह्माजी ने इन्हें शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और तीनों भाइयों में एकता और प्रेम बना रहने का वरदान दिया। वरदान के प्रभाव से ये तीनों भाई अहंकारी हो गए।
तीनों भाइयों ने मिलकर विश्वकर्मा से त्रिकुट पर्वत के निकट समुद्र तट पर लंका का निर्माण कराया और उसे अपने शासन का केंद्र बनाया। इस तरह उन्होंने राक्षसों को एकजुट कर राक्षसों का आधिपत्य स्थापित किया और उसे राक्षस जाति का केंद्र भी बनाया। लंका को उन्होंने धन और वैभव की धरती बनाया और यहां तीनों राक्षसों ने राक्षस संस्कृति के लिए विश्व विजय की कामना की। उनका अहंकार बढ़ता गया और उन्होंने यक्षों और देवताओं पर अत्याचार करना शुरू किया जिससे संपूर्ण धरती पर आतंक का राज कायम हो गया। इन तीनों ने ही विश्वकर्मा से लंका की रचना करवाई और उसके राजा कहलाये।
माल्यवान ने सुंदरी नामक स्त्री से विवाह किया जिससे उसके वज्रमुष्टि, विरुपाक्ष, दुर्मुख, सुप्तघन, यज्ञकोप, मत्त और उन्मत्त नामक ७ पुत्र और अनला नामक एक पुत्री हुई। सुमाली ने केतुमती से विवाह किया जिससे उसे प्रहस्त, अकम्पन्न, विकट, कालिकामुख, धूम्राक्ष, दण्ड, सुपार्श्व, संह्लादि, प्रघस और भासकर्ण नामक १० पुत्रों और राका, पुष्पोत्कटा, कैकसी और कुंभीनसी नामक ४ पुत्रिओं की प्राप्ति हुई। माली ने वसुदा से विवाह किया और उसके अनल, अनिल,
हर और सम्पाति नामक चार निशाचर पुत्र हुए। रावण की मृत्यु के बाद ये चारो विभीषण के सलाहकार और मंत्री बने। रावण राक्षस जाति का नहीं था उसकी माता राक्षस जाति की थी लेकिन उनके पिता यक्ष जाति के ब्राह्मण थे।
जब माल्यवान, सुमाली और माली आदि राक्षसों को लंका से खदेड़ दिया गया, तब लंका को प्रजापति ब्रह्मा ने धनपति कुबेर को सौंप दिया। कुबेर रावण के सौतेले भाई थे। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की दो पत्नियां थीं इलविला और कैकसी। इलविला से कुबेर और कैकसी से रावण, विभीषण, कुंभकर्ण का जन्म हुआ। इलविला यक्ष जाति से थीं तो कैकसी राक्षस।
कुबेर तपस्वी थे। वे तप करके उत्तर दिशा के लोकपाल बने। इनके अनुचर यक्ष निरंतर इनकी सेवा करते हैं। कुबेर रावण के सौतेले भाई होने के बावजूद राक्षस जाति या संस्कृति से नहीं थे। भगवान शंकर ने इन्हें अपना नित्य सखा स्वीकार किया है इसीलिए कुबेर पूज्यनीय माने जाते हैं। माली की पुत्री कैकसी ब्रह्मा के पौत्र और महर्षि पुलत्स्य के पुत्र विश्रवा से ब्याही गयी। इसे उन्हें महापराक्रमी रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण नामक ३ पुत्र और शूर्पणखा नामक एक पुत्री हुई।
राका के खर और दूषण नामक पुत्र हुए जो श्रीराम के हाथों मारे गए। कुंभीनसी का विवाह मधु नामक दैत्य से हुआ जिससे उसे लवण नाम का एक पुत्र हुआ। इसी लवणासुर का वध शत्रुघ्न ने किया था।
रावण को राक्षसों का अधिपति बनाया गया, तब रावण ने राक्षस जाति के खोए हुए सम्मान को पुन: प्राप्त करने का वचन लिया और अपना विश्व विजय अभियान शुरू किया। इस विजय अभियान में रावण ने स्वयं भगवान शिव से भी टक्कर ली।
कुबेर ने रावण के अत्याचारों के विषय में सुना तो अपने एक दूत को रावण के पास भेजा। दूत ने कुबेर का संदेश दिया कि रावण अधर्म के क्रूर कार्यों को छोड़कर यक्षों पर अत्याचार करना बंद करे। रावण द्वारा नंदनवन उजाड़ने के कारण सब देवता उसके शत्रु बन गए थे। रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को अपनी खड्ग से काटकर राक्षसों को भक्षणार्थ दे दिया। कुबेर को इस घटना से बहुत आघात पहुंचा।
अंत में रावण तथा राक्षसों का कुबेर तथा यक्षों से युद्ध हुआ। यक्ष जहां यक्ष बल से लड़ते थे और वहीं राक्षस माया से, अत: राक्षस विजयी हुए। रावण मायावी था और उसके पास कई प्रकार की सिद्धियां थीं।