सोचिए… द्रोणाचार्य जैसे महान धर्मगुरु तक ने वीर अभिमन्यु को मारने के लिए नैतिकता और मर्यादा का ख्याल नहीं किया. एक अकेले अभिमन्यु को घेर कर मार डाला. इसीलिए भीष्म पितामह को मारने के लिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था।
“अर्जुन पितामह कभी स्त्री को देखकर हथियार नहीं उठाएंगे इसलिए तुम अपने रथ पर अपने सामने शिखंडी को रखो!” अर्जुन ने बहस किया तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें यही कहा था कि जब युद्ध अधर्मियों, पापियों और किसी भी नीति को न मानने वालों से हो, तब हमारा एकमात्र लक्ष्य शत्रु पर विजय पाना होता है ना कि मर्यादा का पालन करना।
भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर ही कर्ण के कवच और कुंडल इंद्र ने वापस ले लिए थे। उसके रथ का पहिया जब गड्ढे में फँस गया तब कर्ण पहिए को निकालने के लिए नीचे उतरा…. तभी अर्जुन के तीरों ने उसे छलनी कर दिया।
द्रोणाचार्य को मारने के लिए भी “अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो” की चाल चली गई!
खुद महान सत्यवादी धर्मराज युधिष्ठिर ने आचार्य द्रोणाचार्य के सामने यह बात कही उस वक्त भी भगवान श्री कृष्ण ने कहा था धर्मराज युधिष्ठिर मत भूलिए युद्ध में हमारा लक्ष्य दुश्मन पर विजय प्राप्त करना होता है और एक अप्रिय सत्य भी खतरनाक होता है जितना खतरनाक झूठ होता है!
लेकिन पता नहीं क्यों और कैसे बाद में तमाम हिंदू राजाओं ने महाभारत की सीख को भुला दिया और मर्यादा व कोरी नैतिकता दया इत्यादि दिखायी.. पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 17 बार माफ किया। फिर जब 18वीं बार पृथ्वीराज चौहान हार गए तब उन्होंने मोहम्मद गोरी को याद दिलाया कि मैंने तुम्हें 17 बार माफ किया. तुम मुझे एक बार तो माफ करो।
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तब गोरी ने धूर्तता से हँसते हुए कहा था कि “मैं तुम्हारी तरह मूर्ख नहीं हूँ!” इसलिये कहते हैं, महाभारत और रामायण जो कि हमारा सबसे प्रमाणिक इतिहास है उससे सीखिये कि शत्रुओं का संहार किस स्तर तक जाकर करना चाहिए।