१. उपर्युक्त “गवोपनिषद्” में से दैनिक जप के संस्कृत मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) –
घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवाः।
घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥
घृतं मे हृदये नित्यं घृतं नाभ्यां प्रतिष्ठितम्।
घृतं सर्वेषु गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्॥
गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्॥
अनुवाद = घी और दूध देने वाली, घी की उत्पत्ति का स्थान, घी को प्रकट करने वाली, घी की नदी तथा घी की भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहे। घी मेरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेरे सम्पूर्ण अंगों में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे भी रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूं
२. गौमाता की दैनिक प्रार्थना का मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) –
सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत्॥
अनुवाद = प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें
३. गोमाता को परमात्मा का साक्षात् विग्रह जान कर उनको प्रणाम करने का मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) –
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥
अनुवाद = जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
गौ माता श्लोक