जगन्नाथ रथ यात्रा
जगन्नाथ रथ यात्रा पुरी और अहमदाबाद से निकल रही है, आरती में शामिल हुए शाह
कोरोना समय सीमा के दौरान कठिन सीमाओं के बीच,भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा ओडिशा के पुरी और गुजरात के अहमदाबाद में निकल रही है।
एसोसिएशन के गृह मंत्री अमित शाह ने भी सोमवार सुबह अहमदाबाद में मंगला आरती में हिस्सा लिया।
अहमदाबाद (Ahmedabad) में सोमवार सुबह जगन्नाथ यात्रा की शुरुआत की गई,
इस दौरान मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने सोने की झाड़ू से… सफाई की. अहमदाबाद के जिस रूट से यात्रा निकल रही है,
वहां पर कर्फ्यू लगा दिया गया है.
अहमदाबाद में जगन्नाथ रथ यात्रा का पूरा रूट करीब 13 किमी. का है.
आम तौर पर इस यात्रा को पूरा होने में 10 घंटे का वक्त लगता है,
लेकिन कोविड काल में क्यो… श्रद्धालु नहीं हैं, ऐसे में इसे 4-5 घंटे में ये यात्रा पूरी हो सकती है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) भी इस दौरान अहमदाबाद में ही हैं.
अमित शाह ने सोमवार तड़के मंगला आरती में हिस्सा लिया. सुबह चार बजे हुई
आरती में अमित शाह अपने परिवार के साथ हिस्सा लेने पहुंचे, यहां उन्होंने भगवान जगन्नाथ की पूजा की.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस मौके पर ट्वीट किया कि जगन्नाथ रथयात्रा के शुभ अवसर पर मैं अहमदाबाद के जगन्नाथ मंदिर में कई वर्षों से मंगला आरती में भाग लेता आ रहा हूं
हर बार यहां एक अलग ऊर्जा की प्राप्ति होती है. आज भी महाप्रभु की आराधना करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
महाप्रभु जगन्नाथ सभी पर सदैव अपनी कृपा व आशीष बनायें रखें
जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा इतिहास ( Jagannath Puri Rath Yatra History)-
कहते है, श्रीकृष्ण की मौत के पश्चात् जब उनके पार्थिव शरीर को द्वारिका लाया जाता है, तब बलराम अपने भाई की मृत्यु से अत्याधिक दुखी होते है. कृष्ण के शरीर को लेकर समुद्र में कूद जाते है, उनके पीछे-पीछे सुभद्रा भी कूद जाती है.
इसी समय भारत के पूर्व में स्थित पूरी के राजा इन्द्रद्विमुना को स्वप्न आता है कि भगवान् का शरीर समुद्र में तैर रहा है, अतः उन्हें यहाँ कृष्ण की एक विशाल प्रतिमा बनवानी चाहिए और मंदिर का निर्माण करवाना चाहिए. उन्हें स्वप्न में देवदूत बोलते है कि कृष्ण के साथ, बलराम, सुभद्रा की लकड़ी की प्रतिमा बनाई जाये. और श्रीकृष्ण की अस्थियों को उनकी प्रतिमा के पीछे छेद करके रखा जाये.
जगन्नाथ मंदिर
राजा का सपना सच हुआ, उन्हें कृष्ण की आस्तियां मिल गई. लेकिन अब वह सोच रहा था कि इस प्रतिमा का निर्माण कौन करेगा. माना जाता है,
शिल्पकार भगवान् विश्वकर्मा एक बढई के रूप में प्रकट होते है, और मूर्ती का कार्य शुरू करते है. कार्य शुरू करने से पहले वे सभी से बोलते है कि उन्हें काम करते वक़्त परेशान नहीं किया जाये, नहीं तो वे बीच में ही काम छोड़ कर चले जायेगें.
कुछ महीने हो जाने के बाद मूर्ती नहीं बन पाती है, तब उतावली के चलते राजा इन्द्रद्विमुना बढई के रूम का दरवाजा खोल देते है, ऐसा होते ही भगवान् विश्वकर्मा गायव हो जाते है. मूर्ती उस समय पूरी नहीं बन पाती है, लेकिन राजा ऐसे ही मूर्ती को स्थापित कर देते है, वो सबसे पहले मूर्ती के पीछे भगवान कृष्ण की अस्थियाँ रखते है, और फिर मंदिर में विराजमान कर देते है. विश्वकर्मा जयंती पूजा विधि एवम आरती को पढने के लिए क्लिक करें.
एक राजसी जुलूस तीन विशाल रथों में भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा का हर साल मूर्तियों के साथ निकाला जाता है। भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमा हर 12 साल के बाद बदली जाती है,
जो नयी प्रतिमा रहती है वह भी पूरी बनी हुई नहीं रहती है.
जगन्नाथ पूरी का यह मंदिर एकलौता ऐसा मंदिर है,
जहाँ तीन भाई बहन की प्रतिमा एक साथ है, और उनकी पूजा अर्चना की जाती है.
जगन्नाथ पूरी रथ का पूरा विवरण
- जगन्नाथ(श्रीकृष्ण) का रथ – यह 45 फीट ऊँचा होता है, इसमें 16 पहिये होते है, जिसका व्यास 7 फीट का होता है, पुरे रथ को लाल व पीले कपड़े से सजाया जाता है. इस रथ की रक्षा गरुड़ करता है. इस रथ को दारुका चलाता है. रथ में जो झंडा लहराता है, उसे त्रैलोक्यमोहिनी कहते है. इसमें चार घोड़े होते है. इस रथ में वर्षा, गोबर्धन, कृष्णा, नरसिंघा, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान व रूद्र विराजमान रहते है. इसे जिस रस्सी से खींचते है, उसे शंखचुडा नागनी कहते है.
- बलराम का रथ – यह 43 फीट ऊँचा होता है, इसमें 14 पहिये होते है. इसे लाल, नीले, हरे रंग के कपड़े से सजाया जाता है. इसकी रक्षा वासुदेव करते है. इसे मताली नाम का सारथि चलाता है. इसमें गणेश, कार्तिक, सर्वमंगला, प्रलाम्बरी, हटायुध्य, मृत्युंजय, नाताम्वारा, मुक्तेश्वर, शेषदेव विराजमान रहते है. इसमें जो झंडा लहराता है, उसे उनानी कहते है. इसे जिस रस्सी से खींचते है, उसे बासुकी नागा कहते है.
- सुभद्रा का रथ – इसमें 12 पहिये होते है, जो 42 फीट ऊँचा होता है. इसे लाल, काले रंग के कपड़े से सजाया जाता है. इस रथ की रक्षा जयदुर्गा करता है, इसमें सारथि अर्जुन होता है. इसमें नंद्बिक झंडा लहराता है. इसमें चंडी, चामुंडा, उग्रतारा, वनदुर्गा, शुलिदुर्गा, वाराही, श्यामकली, मंगला, विमला विराजमान होती है. इसे जिस रस्सी से खींचते है, उसे स्वर्णचुडा नागनी कहते है.
इन रथों को हजारों लोग मिलकर खींचते है, सभी लोग एक बार इस रथ को खीचना चाहते है,
क्यूंकि इससे उन्हें लगता है कि उनकी सारी मनोकामना पूरी होती है.
यही वो समय होता है जब जगन्नाथ जी को करीब से देखा जा सकता है.
रथ यात्रा सेलिब्रेशन
रथ यात्रा गुंडीचा मंदिर पहुँचती है,
अगले दिन तीनों प्रतिमा को मंदिर में स्थापित किया जाता है. फिर एकादशी थे ये वही रहते है.
इस दौरान पूरी में मेला भरता है, तरह तरह के आयोजन होते है.महाप्रसाद की बितरी होती है.
एकादशी के दिन जब इन्हें वापस लाया जाता है,
उस दिन वैसे ही भीड़ उमड़ती है, उस दिन को बहुडा कहते है.
जगन्नाथ की प्रतिमा अपने मंदिर के गर्भ में स्थापित कर दी जाती है.
साल में एक बार ही एक प्रतिमा को उनकी जगह से उठाया जाता है.
यात्रा का आयोजन देश विदेश के कई हिस्सों में होता है.
भारत देश के कई मंदिरों में कृष्ण जी की प्रतिमा को नगर भ्रमण के लिए निकाला जाता है.
विदेश में इस्कोन मंदिर के द्वारा रथ यात्रा का आयोजन होता है.
100 से भी ज्यादा विदेशी शहरों में इसका आयोजन होता है,
जिसमें से मुख्य डबलिन, लन्दन, मेलबर्न, पेरिस, न्यूयॉर्क, सिंगापूर, टोरेन्टो, मलेशिया, कलिफ़ोर्निया है.
इसके अलावा बांग्लादेश में रथ यात्रा का बहुत बड़ा आयोजन होता है, जो एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है.