अमेरिका-रूस तनाव के बीच पुतिन की भारत यात्रा पर दुनिया की नजरें, ऊर्जा और रणनीतिक साझेदारी पर होंगी अहम वार्ताएं

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अमेरिका के साथ बढ़ते टैरिफ विवाद और वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी भारत यात्रा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है। यह दौरा दोनों देशों के लिए बेहद अहम माना जा रहा है, क्योंकि इसके जरिए भारत और रूस अपनी विशेष रणनीतिक साझेदारी की प्रगति का आकलन करेंगे और बदलती परिस्थितियों में उभरते नए अवसरों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

ऊर्जा सहयोग रहेगा वार्ता का प्रमुख केंद्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच होने वाली वार्ता में द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती, क्षेत्रीय सुरक्षा, वैश्विक चुनौतियां और परस्पर हितों से जुड़े कई मुद्दों पर बातचीत होगी।
इस दौरे का मुख्य फोकस ऊर्जा सहयोग—विशेषकर कच्चे तेल की आपूर्ति—पर रहेगा। माना जा रहा है कि रूस भारत को तेल आयात बढ़ाने के लिए अतिरिक्त छूट का प्रस्ताव दे सकता है।

गौरतलब है कि अमेरिकी आर्थिक दबाव और टैरिफ विवादों के चलते हाल के महीनों में भारत का रूस से तेल आयात लगभग आधा हो चुका है। इस महीने भारत ने रूस से प्रतिदिन 9.48 लाख बैरल तेल आयात किया, जबकि पिछले महीने यह आंकड़ा 19 लाख बैरल प्रति दिन था।

अमेरिकी टैरिफ का सीमित प्रभाव

विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ का भारत के व्यापार पर उतना बड़ा असर नहीं पड़ा है। सितंबर में जहां भारत के अमेरिका को निर्यात में 12% की गिरावट दर्ज हुई, वहीं अक्टूबर में यह कमी घटकर 8.6% रह गई, जो स्थिरता का संकेत है।

परमाणु ऊर्जा और गैस आपूर्ति पर भी समझौते संभव

सरकारी सूत्रों का कहना है कि पुतिन की इस यात्रा के दौरान भारत और रूस परमाणु ऊर्जा सहयोग, गैस आपूर्ति और अन्य ऊर्जा क्षेत्रों में बड़े समझौते कर सकते हैं। साथ ही आने वाले 25 वर्षों के लिए एक संयुक्त दीर्घकालिक दृष्टिपत्र जारी किया जा सकता है, जिसमें अंतरिक्ष, रक्षा, सुरक्षा, ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में व्यापक सहयोग का खाका तैयार किया जाएगा। विशेषज्ञों के अनुसार, यह दस्तावेज दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों को नई दिशा और मजबूती देगा।

व्यापार संतुलन सुधारना भारत की प्राथमिकता

पुतिन-मोदी वार्ता के दौरान भारत का मुख्य जोर रूस को निर्यात बढ़ाने पर रहेगा। वर्तमान में भारत का रूस से आयात काफी अधिक है, जबकि निर्यात केवल लगभग 10% के आसपास है। भारत इस असंतुलन को कम करने के लिए रूस में नई आपूर्ति शृंखलाएं, नए उत्पाद और नए बाजारों की पहचान करना चाहता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह यात्रा भारत के लिए रूस में व्यापारिक संतुलन सुधारने का महत्वपूर्ण अवसर साबित हो सकती है।