आपदा से बचाएंगे विशेष ‘शेल्टर’, उत्तराखंड में शुरू हुआ नया पायलट प्रोजेक्ट

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उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के दौरान हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और बदलते मौसम के चलते इस यात्रा के दौरान भूस्खलन, बाढ़, बादल फटना, हिमस्खलन और भू-धंसाव जैसी आपदाएं आम हो चुकी हैं। अब राज्य सरकार ने एक बड़ी पहल करते हुए यात्रियों और स्थानीय लोगों की जानमाल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष आपदा शेल्टर बनाने का निर्णय लिया है।

राज्य आपदा प्रबंधन विभाग यह शेल्टर विश्व बैंक द्वारा पोषित ‘यू प्रिपेयर’ योजना के तहत तैयार कराएगा। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पहले चरण में चारधाम क्षेत्रों में 10 बहुउद्देश्यीय शेल्टर बनाए जाएंगे। यदि यह प्रयास सफल रहता है, तो इसे राज्य के अन्य संवेदनशील इलाकों में भी लागू किया जाएगा।

ओडिशा मॉडल से प्रेरित, उत्तराखंड में नया प्रयोग

राज्य सरकार ने इस परियोजना के लिए ओडिशा मॉडल को आधार बनाया है, जहां सुनामी और चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में आश्रय स्थलों ने बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाई है। हालांकि, उत्तराखंड की चुनौती अलग है — यहां पर्वतीय आपदाएं जैसे भूस्खलन, भूकंप और बर्फीले तूफान अधिक सक्रिय हैं।

विनोद कुमार सुमन, सचिव, आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास, ने बताया, “शेल्टर स्थानीय निवासियों और चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं दोनों के लिए उपयोगी होंगे। इन्हें यात्रा सीजन के अलावा भी आपात स्थिति में इस्तेमाल किया जा सकेगा।”

शेल्टर में होंगी सभी सुविधाएं

इन शेल्टरों को इस तरह डिज़ाइन किया जाएगा कि वे आपदा की स्थिति में तुरंत राहत देने में सक्षम हों।
पानी, भोजन, शौचालय, प्राथमिक उपचार
बिजली व संचार व्यवस्था
बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों के लिए अलग व्यवस्था

अधिकारी बताते हैं कि ये शेल्टर मुख्य सड़कों के निकट बनाए जाएंगे ताकि आपात स्थिति में लोगों को तेजी से राहत दी जा सके।

संस्था चयन की प्रक्रिया शुरू

शेल्टर निर्माण और डिजाइन से जुड़े तकनीकी परामर्श के लिए संस्थाओं से आवेदन मांगे गए हैं। चयनित एजेंसी शेल्टर के डिजाइन, संचालन और आपदा-प्रतिक्रिया से जुड़े तकनीकी सुझाव देगी।

यात्रा सीजन के अलावा इन शेल्टरों का उपयोग स्थानीय समुदाय की आपदा तैयारी प्रशिक्षण, प्राथमिक स्वास्थ्य शिविर, और स्थानीय राहत सामग्री भंडारण जैसे कार्यों में किया जा सकता है।

उत्तराखंड सरकार का यह प्रयास आपदा प्रबंधन की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है। यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो भविष्य में पूरे राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में सुरक्षित और संगठित आपदा प्रतिक्रिया ढांचे की नींव रखी जा सकेगी।