
कहा जाता है, चौसठ योगिनी में से किसी भी एक योगिनी को सिद्ध करने पर वह योगिनी साधक की समस्त कामनाओं की पूर्ति करती है। ‘चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरव बाजत ताल मृदंगा और बाजत डमरु’, दुर्गा जी की आरती गाते समय चौसठ योगिनियों का वर्णन आते ही चौसठ योगिनियों के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है कि कौन है चौसठ योगिनी?
प्राचीन तंत्र ग्रंथों में चौसठ योगिनी के बारे में वृहद विवरण प्राप्त होता है। इनमें से प्रत्येक सुख दायिनी योगिनी की पूजा अलग-अलग नामोच्चार पूर्वक होती है। चौसठ योगिनियों के नाम इस प्रकार हैं,
गजानना, २ सिंह-मुखी, ३ गृद्धास्या, ४ महेश्वरी, ५ उष्ट्र-ग्रीवा, ६ हय-ग्रीवा, ७ काल-रात्रि, ८ निशाचरी, ६ कङ्काली, १० रौद्र-जित्कारी, ११ फेत्कारी, १२ भूत-डामरी, १३ वाराही, १४ शरभास्या, १५ प्रेताक्षी, १६ मांस-भोजिनी, १७ रुद्र-काली, १८ डाकिनी, १६ काली, २० शुक्लाङ्गी, २१ कलह-प्रिया, २२ उल्लूकिका, २३ शिवा, २४ धूम्राक्षी, २५ चित्र-नादिनी, २६ ऊर्ध्व-केशी, २७ भद्र-केशी, २८ शव-हस्ता, २६ अस्थि-मालिनी, ३० कपाल-हस्ता, ३१ रक्ताक्षी, ३२ श्येनी, ३३ रुधिर-पायिनी, ३४ खड्गिनी, ३५ दीर्घ- लम्बोष्ठी, ३६ पाश-हस्ता, ३७ अवलोकिनी, ३८ काक-तुण्डा, ३६ सुप्रसिद्धा, ४० धूर्जटी, ४१ विष-भक्षिणी, ४२ शिशुघ््नी, ४३ पाप-हन्त्री, ४४ मयूरी, ४५ विकटानना, ४६ भय-विध्वंसिनी, ४७ प्रेतास्या, ४८ प्रेत- वाहिनी, ४६ कोटराक्षी, ५० ललज्जिह्वा, ५१ अष्ट-वक्त्रा, ५२ सुर-प्रिया, ५३ व्यात्तास्या, ५४ धूम- निःश्वासा, ५५ त्रिपुरा, ५६ भुवनेश्वरी, ५७ वृहत्-तुण्डा, ५८ दण्ड-हस्ता, ५६ प्रचण्डा, ६० चण्ड-विक्रमा, ६१ स्थूल-केशी, ६२ वृहत्-कुक्षि, ६३ यम-दूती, ६४ करालिनी।
जब चौंसठ योगिनी के नामों को स्मरण कर साधक पूजा करते हैं, तो यही योगिनी साधक को उसके मन की स्थिति के अनुरूप ही फल प्रदान करती हैं। यहां एक बात अवश्य ध्यान देने की है, कि अगर मन सच्चा है, निर्मल है, छल-कपट, राग-द्वेष से मुक्त है तो ये योगिनी शीघ्र ही सिद्ध हो जाती हैं।
चौंसठ योगिनियों की उत्पत्ति के बारे में अनेक कथाऐं हैं। एक कथानक अनुसार, देवी काली ने घोर नामक दैत्य का वध करने के लिए चौसठ योगिनियों का रूप धारण किया था। एक अन्य कथा कहती है कि, भगवती देवी दुर्गा ने चौसठ योगिनियों को अपने शरीर से उत्पन्न किया था। चौंसठ योगिनियों की साधना अत्यन्त प्रभावशाली मानी जाती है।
चौंसठ योगिनियों की साधना नियम एवं विधि पूर्वक करनी चाहिए, बिना गुरु के मार्गदर्शन में अथवा बिना योग्य गुरु से दीक्षा लिए किसी भी प्रकार की साधना में सफलता शून्य रहती है इसलिए तंत्र, मंत्र, ज्योतिष आदि के किसी भी प्रयोग को करने से पूर्व गुरु दीक्षा अवश्य लेनी चाहिए। दीक्षा के बाद, साधक को नियमित रूप से उक्त योगिनी की पूजा करनी चाहिए।