वैश्विक मंच पर विजय; प्रीति पाल ने पेरिस 2024 पैरालिंपिक में दो कांस्य पदक जीते

7

प्रीति पाल ने पेरिस 2024 पैरालिंपिक में अपने असाधारण प्रदर्शन से सबको अचंभित कर दिया। महिलाओं की टी35 श्रेणी में 100 मीटर और दूसरा 200 मीटर स्पर्धाओं में उन्होंने दो कांस्य पदक जीते । यह उपलब्धि न केवल उनके करियर में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुई है, बल्कि इसके साथ ही वह एक ही पैरालिंपिक खेल में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला ट्रैक एंड फील्ड एथलीट भी बन गई हैं। पेरिस 2024 में प्रीति की सफलता वर्षों की कड़ी मेहनत का परिणाम है।

शुरुआती जीवन: चुनौतियों से भरा बचपन

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 22 सितंबर, 2000 को जन्मी प्रीति पाल का शुरुआती जीवन चुनौतियों एवं कठिनाइयों से भरा था। उनके पैरों की कमजोरी और अनियमित मुद्रा के कारण जन्म के छह दिन बाद ही उनके शरीर के निचले हिस्से में प्लास्टर लगा दिया गया। इससे उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। बचपन में उन्होंने अपने पैरों को मजबूत बनाने के लिए पारंपरिक उपचार भी करवाए।पांच साल की उम्र में उन्हें कैलिपर्स लगाए गए और उसे उन्होंने आठ साल तक पहना। प्रीति ने अपनी इच्छा शक्ति के दम पर सभी बाधाओं को पार किया।

एक नई राह की तलाश: पैरालिंपिक से प्रेरणा

प्रीति ने 17 साल की उम्र में जब सोशल मीडिया पर पैरालिंपिक खेलों के बारे में जाना तो जीवन के प्रति उनका नजरिया ही बदल गया। एथलीटों से प्रेरित होकर उन्‍होंने महसूस किया कि वह भी खेलों में वह मुकाम हासिल कर सकती हैं। उन्‍होंने एक स्थानीय स्टेडियम में अभ्यास करना शुरू कर दिया, मगर वित्तीय बाधाओं के कारण नियमित रूप से अभ्‍यास के लिए जाना मुश्किल था। जब उनकी मुलाकात पैरालिंपिक एथलीट फातिमा खातून से हुई तो उनकी किस्मत बदल गई। खातून ने ही उन्‍हें पैरा-एथलेटिक्स से परिचित कराया। प्रीति ने 2018 में स्टेट पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लिया और यहीं से उनके एथलेटिक सफर की शुरुआत हुई।

सरकारी मदद: उनकी यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका

प्रमुख सरकारी हस्तक्षेपों ने प्रीति को वह संसाधन उपलब्‍ध कराया जिसकी उन्‍हें बेहद जरूरत थी। प्रशिक्षण और स्‍पर्धाओं में भाग लेने के लिए वित्तीय सहायता, शीर्ष स्तर की सुविधाओं तक पहुंच, और टारगेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम (टीओपीएस) एवं खेलो इंडिया जैसे कार्यक्रमों के जरिये प्राप्‍त सहायता उसकी प्रगति में सहायक रही। एसएआई जेएलएन स्टेडियम में कोच गजेंद्र सिंह के नेतृत्‍व में प्रशिक्षण के लिए दिल्ली जाना काफी अहम साबित हुआ । सिंह ने उनके प्रदर्शन को बेहतर बनाने के काफी अभ्यास करवाया।

वैश्विक मंच पर विजय: विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप और उससे आगे

प्रीति के समर्पण ने उन्हें कई राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनकी कड़ी मेहनत का फल उस समय मिला जब उन्होंने एशियाई पैरा गेम्स 2022 के लिए क्वालीफाई किया। हालांकि वह 100 मीटर और 200 मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर रहीं, लेकिन उनका दृढ़ संकल्प कभी कम नहीं हुआ। उन्होंने अपना ध्‍यान बड़े लक्ष्यों पर केंद्रित किया और पैरालिंपिक खेलों को अपना अंतिम लक्ष्य बनाया। उनके अथक प्रयासों का नतीजा 2024 विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उनके शानदार प्रदर्शन के रूप में दिखा, जहां उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर स्पर्धाओं में कांस्य पदक हासिल किए। यह जीत उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ता का प्रमाण हैं। इसने उन्हें वैश्विक मंच पर एक दुर्जेय प्रतियोगी के रूप में स्थापित किया है।

प्रीति पाल ने पेरिस 2024 पैरालिंपिक में ऐतिहासिक सफलता हासिल की है। महज 23 साल की उम्र में उन्होंने महिलाओं की 100 मीटर और 200 मीटर टी35 स्पर्धाओं में कांस्य पदक जीते। इसके साथ ही उन्‍होंने एक ही पैरालिंपिक में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला ट्रैक एंड फील्ड एथलीट बनकर इतिहास रच दिया।

सभी के लिए प्रेरणा: प्रीति पाल की विरासत

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव से पैरालिंपिक पोडियम तक प्रीति पाल का सफर खेलों के प्रति उनके जुनून की मिसाल है । उनकी उपलब्धियां अनगिनत लोगों को प्रेरित करती हैं और दर्शाती हैं कि दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ सभी बाधाओं को पार किया जा सकता है।