पूर्वांचल यानी पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और नेपाल की तराई में खास तौर पर मनाया जाने वाला छट पूजा का त्यौहार इस बार इस बार छठ का यह पर्व 11 नवंबर से शुरू होगा. 11 नवंबर को नहाय-खाय से ये पर्व मनाया जाएगा. इसके बाद उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक यह पर्व मनाया जाता है. सूर्य उपासना का महापर्व छठ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी की तिथि तक भगवान सूर्यदेव की अटल आस्था के रूप में मनाया जाता है। दिवाली के बाद मनाई जाने वाली छठ पूजा का काफी महत्व होता है, भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक यह पर्व मनाया जाता है।
सबसे कठिन व्रत कहा जाने वाला ‘दंड देना’ भी इस दो दिन के दौरान ही किया जाता है. इसे करने वाले शाम और सुबह अपने घर से पूजा होने की जगह तक दंडवत प्रणाम करते हुए पहुंचते और जल स्रोत की परिक्रमा करते हैं. दंडवत का मतलब जमीन पर पेट के बल सीधा लेटकर प्रणाम करना है. सारे श्रद्धालु बहुत ही आदर के साथ इनके लिए रास्ता छोड़ते हैं।
महिला प्रधान व्रत के चारों दिन सबसे शुद्धता, स्वच्छता और श्रद्धा का जबर्दस्त आग्रह रहता है. व्रती जिन्हें ‘पवनैतिन’ भी कहा जाता है, इस दौरान जमीन पर सोती हैं और बिना सिलाई के कपड़े पहनती हैं. वे उपवास करती हैं और पूजा से जुड़े हर काम को उत्साह से करती हैं. ‘छठ गीत’ नाम से मशहूर इस दौरान गाए जाने वाले लोकगीतों को इन महिलाओं का सबसे बड़ा सहारा बताया जाता है।
छठ पर्व की तारीख– नहाय-खाए- 11 नवंबर, खरना (लोहंडा)- 12 नवंबर, सायंकालीन अर्घ्य- 13नवंबर, प्रात:कालीन अर्घ्य- 14 नवंबर