दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1987 में उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा नरसंहार मामले में एक अल्पसंख्यक समुदाय के 42 लोगों की हत्या के जुर्म में 16 पुलिसर्किमयों को बुधवार को उम्रकैद की सजा सुनाई। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर एवं न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने निचली अदालत के उस आदेश को पलट दिया जिसमें उसने आरोपियों को बरी कर दिया था।
उच्च न्यायालय ने प्रादेशिक आर्म्ड कॉन्स्टेबुलरी (पीएसी) के 16 पूर्व जवानों को हत्या, अपहरण, आपराधिक साजिश तथा सबूतों को नष्ट करने का दोषी करार दिया। अदालत ने नरसंहार को पुलिस द्वारा निहत्थे और निरीह लोगों की ‘‘लक्षित हत्या’’ करार दिया।
निचली अदालत द्वारा हत्या तथा अन्य अपराधों के आरोपी 16 पुलिसर्किमयों को बरी करने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। दोषी करार दिए गए पीएसी के सभी 16 जवान सेवानिवृत्त हो चुके हैं। मेरठ के हाशिमपुरा में 2 मई 1987 को 40 मुस्लिम युवकों को हत्याकांड के 30 साल बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने मार्च महीने में पहली बार सबूत पेश किए थे। पीएसी के जवानों ने इस नरसंहार को अंजाम दिया जिसमें 78 वर्षीय गवाह रणबीर सिंह बिश्नोई ने एक केस डायरी सौंपी गई थी। इस केस डायरी में कथित रुप से शामिल सभी पीएसी के जवानों के नाम शामिल हैं। डायरी में 1987 में मेरठ पुलिस लाइंस में तैनात पीएसी कर्मियों के नाम दर्ज हैं।