शबनम ने प्रेमी के साथ मिल कर अपने 7 घर वालों को मार डाला,11 महीने के भतीजे को भी नही बख्सा
14 अप्रैल 2008, रात 1 बजे, बावनखेड़ी गांव, अमरोहा
बावनखेड़ी गांव, अमरोहा में रहने वाली शबनम के पिता शौकत एक कॉलेज में लेक्चरर थे. एक भाई एमबीए और दूसरा इंजीनियर…. घर की सबसे बड़ी शबनम जो की अंग्रेजी और भूगोल में डबल एमए की है.. पूरा घर बेहद पढ़ा लिखा…..पूरे गांव में शौकत और उनके परिवार की बहुत इज्जत थी. मगर उस खौफनाक रात में पूरे परिवार की एक साथ मौत हो गई. उस रात एक पड़ोसी ने पुलिस को फोन किया और बताया कि शौकत के घर में कोई हादसा हो गया है.. पुलिस की टीम शौकत के घर पहुंचती है. जैसे ही पुलिस पहुंचती है इतनी मौते एक साथ देख के दंग रह जाती है….
इसी दौरान इंस्पेक्टर आरपी गुप्ता को एक मुखबिर ने खबर दी. कि सलीम को उठा लो, केस खुल जाएगा.. इसी दौरान इंस्पेक्टर गुप्ता को पता चला कि दो दिन पहले ही सलीम को पुलिस ने उठाया था. उससे पूछताछ भी की, लेकिन फिर उसे क्लीन चिट देकर छोड़ दिया था. इसी बीच थोड़ा वक़्त और बीता और इंस्पेक्टर आरपी गुप्ता को शबनम से पूछताछ का मौक़ा मिल गया. आरपी गुप्ता ने 14 और 15 अप्रैल की रात की पूरी कहानी शबनम से पूछी. शबनम ने उस रात की जो कहानी बताई, वो ये थी कि वो रात को छत पर सो रही थी.छत के रास्ते कुछ चोर घर में दाखिल हुए फिर वो ज़ीने से नीचे पहुंचे और उसके बाद नीचे के ही रास्ते से बाहर निकल गए. फिर जब वो नीचे पहुंची, तो उसने सबको मुर्दा पाया. इसके बाद वो चीखी, शोर मचाया, जिसके बाद किसी पड़ोसी ने उसकी आवाज़ सुनी और पुलिस को खबर कर दी. लेकिन इस कहानी में कुछ ऐसे झोल थे.जिसने पहली बार शबनम को शक के घेरे में ला दिया.
उस रात बारिश नहीं हुई थी. ये शबनम का पहला झूठ था. अगर चोर दरवाज़े से बाहर निकले, तो कुंडी अंदर से बंद कैसे थी. ये शबनम का दूसरा झूठ था..अगर चोर दीवार के रास्ते छत पर आए, तो दीवार पर इसके कोई निशान क्यो नहीं थे, ये शबनम का तीसरा झूठ था. शबनम अब इंस्पेक्टर गुप्ता के शक के घेरे पर थी. लेकिन तभी एक ऐसी चीज हई कि इंस्पेक्टर गुप्ता समेत सभी पुलिसवालों के हाथ-पैर फूल गए. तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती शबनम से हमदर्दी जताने उसके घर जा पहुंची और मुआवज़े के तौर पर शबनम को पांच लाख रुपये की धन राशी देने. इधर, पुलिस के हिसाब से शबनम क़ातिल थी. ऐसे में मुख्यमंत्री का मुआवज़ा देना अजीब सी स्थिति पैदा करनेवाला था… इंस्पेक्टर गुप्ता ने अपने सीनियर के साथ मायावती का पीए से बात की इसके बाद पुलिस का कहना है की मायावती बिना पैसे दिये लखनऊ लौट गई.
लेकिन अब इंस्पेक्टर गुप्ता के सामने चुनौती ये थी कि वो साबित करें कि शबनम ही क़ातिल है. इंस्पेक्टर गुप्ता ने तब तक लोगों से पूछताछ में ये पता लगा लिया इंस्पेक्टर गुप्ता ने तब तक लोगों से पूछताछ में ये पता लगा लिया था कि बावनखेड़ी गांव के ही रहनेवाले सलीम और शबनम में अच्छी दोस्ती थी.यहां तक कि शबनम अक्सर सलीम की बाइक पर स्कूल भी जाया करती थी. मुखबिर पहले ही सलीम के बारे में ईशारा दे चुका था. 17 अप्रैल 2008 को यानी हादसे के दो दिन बाद इंस्पेक्टर गुप्ता ने सलीम को अपने पास बुलाया. वो इस क़त्ल-ए-आम की जानकारी से लगातार इनकार करता रहा. लेकिन इंस्पेक्टर गुप्ता को लेकर उसके मन में ख़ौफ भी था. इंस्पेक्टर गुप्ता ने पुलिसिया तरीका अपनाया इसको अपनाते ही उन्हें इस केस में पहली कामयाबी मिली. सलीम टूट गया और फिर उसने पूरी कहानी उगल दी. उसने पुलिस को कहानी सुनाई कि वो शबनम से प्यार करता था. और तमाम बातें उसने पुलिस को बता दी. अब कहानी पुलिस के सामने थी. लेकिन सबूत अब भी कोई हाथ में नही था सलीम ने ही पुलिस को पहला सबूत भी दिया. सबूत था वो कुल्हाड़ी जिससे सात लोगों का क़त्ल किया गया था. वारदात के बाद उस कुल्हाड़ी को तालाब
में फेंक दिया गया.. पुलिस ने कुल्हाड़ी बरामद कर ली थी. अब कहानी, गवाह और सबूत तीनों पुलिस के पास थे. इसके बाद 18 अप्रैल को यानी सामूहिक हत्याकांड के चौथे दिन इंस्पेक्टर गुप्ता अपनी टीम के साथ शबनम के घर पहुंचे. साथ में सलीम भी था. इस बार इंस्पेक्टर गुप्ता शबनम से पीड़ित के तौर पर नहीं, बल्कि एक क़ातिल के तौर पर सवाल पूछ रहे थे. शबनम इनकार करती है. लेकिन तभी सलीम शबनम को बताता है कि उसने सब कुछ पुलिस को बता दिया. तब शबनम पहली बार टूट जाती है..
अब केस सुलझ चुका था. क़त्ल की कहानी. क़त्ल का मकसद और दोनों क़ातिल पुलिस के शिकंजे में थे. शबनम के खून से सने कपड़े भी पुलिस बरामद कर चुकी थी. इसके साथ ही दो मोबाइल फोन भी बरामद हुये जो आगे चलकर इस केस में अहम सबूत बने. उन दोनों फोन पर वारदात के दिन 55 बार कॉल की गई थी. 3 अगस्त 2010 में अमरोहा की अदालत ने सलीम और शबनम को मुजरिम क़रार देते हुए फांसी की सज़ा सुनाई थी. तब जज एसएए हुसैनी ने अपने ऑर्डर में ये लिखा था कि उन्होने अपने तीस साल के न्यायिक जीवन में इससे अच्छी और कोई जांच नही पाई.. जिसके लिए इंस्पेक्टर गुप्ता की तारीफ भी की …बाद में ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में गया.इलहाबाद हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा बरकरार रखी .. इसके बाद 2015 में सुप्रीमकोर्ट ने भी इसी सजा को बरकरार रखा .. राष्ट्रपति भी दया याचिका खारिज कर चुके है. शबनम पुनर्विचार याचिका और दूसरे कानूनी हथियारों का इस्तेमाल कर चुकी है. लेकिन सलीम के पास अब भी कुछ रास्ते बचे हुए हैं पुनर्विचार याचिका उसने कुछ वक्त पहले ही दाखिल की है. यही वजह है कि फिलहाल सिर्फ शबनम की फांसी दिए जाने की बात हो रही है. सलीम को नहीं. सलीम इस वक्त इलाहाबाद के नैनी जेल में बंद है… जबकि शबनम रामपुर की ज़िला कारागार में. अब दोनों को ही आखिरी फैसले का इंतज़ार है. फैसला फांसी का, फांसी की तारीख़ का और इस कहानी के ख़त्म होने का…………………